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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

5/31/2009

कपड़े और किताब का पिंजर-आलेख

उनके चेहरे पर बटन की तरह टंगी आंखें कपड़े और किताबों के पिंजर से बाहर झांकती दिखती है। ऐसा लगता है कि चिड़ियाघर के पिंजड़े में कोई इंसानी बुत ऐसे ही सजाये गये हैं जिनके आगे कपड़े के एक ही रंग और किसी किताब की लिखी लाईने लोहे के दरवाजे की तरह ऐसे ही लगी हों जैसे पिंजड़े के बाहर लगी होती हैं जहां से वह कभी निकल ही नहीं सकते। बस उससे बाहर झांकते हैं कि कोई पर्यटक आये तो वह उनकी तरफ देखे और वह अपनी अदाओं से उसे प्रभावित करें।
दुनियां में हर मनुष्य एक ही तरह से पैदा होता है पर जीवन यापन का सबका अपना अलग तरीका होता है। देखा जाये तो जीवन एक शब्द है जिसमें विविध रंगों, स्वादों और विचारों की धारा बहती है। यह धारा उसके मन रूपी हिमालय से बहती है जो इंसान को बहाती हुई ले जाती है। अधिकतर इंसान इस धारा में बहते हुए जाते हैं और उनकी कोई अपनी कामना नहीं होती। मगर कुछ लोग ऐसे हैं जो इस मानव रूपी मन की धारा के उद्गम स्थल पर बैठकर उसका बहाव अपनी ओर करना चाहते हैं ताकि उसका स्वामी मनुष्य बहकर उनकी तरफ आये ताकि वह उस पर शासन कर सकें। तय बात है कि एक इंसान वह है जो अपनी एकलधारा में आजादी से बहता हुआ चलता है और एक दूसरा है जो चाहता है कि अनेक इंसान उसकी तरफ बहकर आयें ताकि वह शासक या विद्वान कहला सके।
सर्वशक्तिमान के अनेक रूप और रंग हैं पर उसके किसी एक रूप और रंग को पकड़ कर ऐसे लोग वह पिंजड़ा बना लेते हैं जिसमें वह दूसरों को फंसाने के लिये घूमते हैं। उनको लगता है कि वह आदमी को अपने रंग और किताब के पिंजड़े में कैद कर लेंगे पर सच यह है कि वह स्वयं भी उसकी कैद में रहते हैं।
सर्वशक्तिमान के कितने रंग और रूप हैं कोई नहीं जानता पर फिर भी ऐसे लोगों ने अभी तक दस बीस की कल्पना को प्रसिद्ध तो कर ही दिया है। लाल, पीला, नीला, सफेद, काला, हरा, पीला और पता नहीं कितने रंग हैं। हरे रंग मेें भी बहुत सारे रंग हैं पर अक्ल और ताकत की ख्वाहिश रखने वाले कोई एक रंग सर्वशक्तिमान की पहचान बताते हैं। सभी की किताबेें हैं जिसमें हर शब्द और लकीर सर्वशक्तिमान के मूंह से निकली प्रचारित की जाती है। अपने तयशुदा रंग के कपड़े रोज पहनते हैं और वह किताब अपने हाथ में पकड़ कर उसे पढ़ते हुए दुसरों को सुनाते हैं। राजा हो या प्रजा उनके दरवाजे पर आकर सलाम ठोकते है। राजा इसलिये आता है क्योंकि प्रजा वहां आती है और उसे निंयत्रित करने के लिये ऐसे सिद्ध, पीर, फकीर, साधु, संत-इसके अलावा कोई दूसरा शब्द जो सर्वशक्तिमान से किसी की करीबी दिखाता हो-बहुत काम आते हैं। प्रजा इसलिये इनके पिंजर में आती है क्योंकि राजा आता है और पता नहीं कब उससे काम पड़ जाये और यह पिंजर में बंद अजूबा उसमें सहायक बने।
यह अजूबे कभी अपने पिंजर ने बाहर नहीं आते। जिस रंग के कपड़े पहन लिये तो फिर दूसरा नहीं पहन सकते। जिस किताब को पकड़ लिया उसकी लकीर में ही हर नजीर ढूंढते और फिर बताते हैं। वह किताब अपने लिये नहीं दूसरे को मार्ग बताने के लिये पढ़ते हैं। खुद पिंजडे में बंद हैं पर दूसरे को मार्ग बताते हैं। दाढ़ी बढ़ा ली। कुछ मनोविशेषज्ञ कहते हैं कि बढ़ी दाढ़ी वैसे भी दूसरे पर प्रभाव छोड़ती है-अर्थात आप ज्ञानी या दानी न भी हों तो उसके होने का अहसास सभी को होता है। वह दाढ़ी नहीं बनाते क्योंकि उनकी छबि इससे खराब होती है। इस दुनियां में एक भय उन पर शासन करता है कि राजा और प्रजा कहीं उनसे विरक्त न हो जायें।

कभी दृष्टा बनकर सर्वशक्तिमान के किसी भी रूप के दरबार में पहुंच जाओ और महसूस करो कि चिड़ियाघर में आ गये हो। देखो वहां पर एक ही रंग के कपड़े और किताब के पिंजर में बंद उस अजूबे को जो तुम्हें सर्वशक्तिमान का मार्ग बताता है। दुनियां बनाने वाले ने अनेक रंग बनाये हैं और उसके बंदों ने ढेर सारी किताबें लिखी हैं पर एक ही रंग और किताब की लकीरों के पिंजर में बंद वह अजूबे वहां से भी राजा और प्रजा के बीच दलाली करते नजर आते हैं। अगर तुम आजाद होकर सोचोगे तभी उनका पिंजर दिखाई देगा नहीं तो उनके हाथ में बंद उससे भी छोटे पिंजर में तुम अपने को फंसा देखोगे वैसे ही जैसे पिंजड़े में बंद शेर के पास जाकर कोई आदमी अपना हाथ उसके मूंह में दे बैठता है और फिर..........जो होता है वह तो सर्वशक्तिमान की मर्जी होती है।
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