मजदूर खामोशी से उस बुद्धिजीवी को हैरानी से देखने लगा तो बुद्धिजीवी ने कहा-‘लगता है कि बहरे होने के साथ गूंगे भी हो। तब तो तुम्हें वहां जरूर चलना चाहिये।’
बुद्धिजीवी महोदय उसे इशारों में समझाने लगे तो वह मजदूर बोला-‘आप गलत समझ रहे हैं। मैं न तो बहरा हूं न गूंगा। मैं तो मजदूर हूं पेट से भूखा हूं। वह भाषण कर रहे हैं। जिनके पास कोई काम नहीं हैं या पेट भरे हुए हैं वह उनका भाषण सुन रहे हैं। मैं तो छोटा आदमी हूं। उद्धारक साहब तो बड़े आदमी हैं।
बुद्धिजीवी ने कहा-‘चलो! मुझे उन पर एक लेख लिखना है। तुम वहां चलोगे तो तुम्हारा औरा उनका फोटो निकाल कर छाप दूंगा। क्या जोरदार मसाला बनेगा? वह गरीबों और मजदूरों के मसीहा हैं। तुम यह फावड़ा तस्सल हाथ में पकड़े जब उनका भाषण सुनोगे तब तुम्हारा फोटो निकाल कर उसे प्रकाशित करूंगा। लोगों को पता लग जायेगा कि उद्धारक जी कितने महान हैं कि मजदूर लोग तक उनको प्यार करते हैं?’
मजदूर ने कहा-‘आप मुझे कुछ पैसा दें तो चलने को तैयार हूं। मेरी हाजिरी का नुक्सान होगा? उसकी भरपाई कौन करेगा? वह और आप तो बड़े आदमी है अपना काम निकालकर चले जायेंगे पर मेरा पेट कैसे भरेगा?
बुद्धिजीवी ने कहा-धत तेरे की! तुम गरीब और मजदूर इसलिये ही तरक्की नहीं कर पाते क्योंकि जो तुम्हारे लिये लड़ता है उसका साथ नहीं देते। बस हमेशा पैसे और रोटी की बात करते हो।’
मजदूर ने कहा-‘अगर आप मुझे सौ रुपये दें तो चलने को तैयार हूं।’
बुद्धिजीवी ने कहा-‘फिर तुम्हें क्यों ले चलूं, मैं किसी एक्टर को नहीं ले आऊंगा। वह एक्टर मेकअप करके आयेगा और आधुनिक मजदूर की तरह लगेगा तो मेरे लेख के साथ लगे फोटो में रौनक भी आयेगी।’
बुद्धिजीवी वहां से चला गया और मजदूर अपने काम में लग गया। थोड़ी देर बाद वह बुद्धिजीवी उसी मजदूर के पास अपने साथ एक एक्टर को ले आया जो पेंट शर्ट पहने हुए था। उसने मजदूर से कहा-‘देखो कितना बढि़या एक्टर लाया हूं। इसका फोटो देखकर सभी सोचेंगे कि देखो मजदूर भी इस देश में कितने खुशहाल हैं। लाओ अपना तस्सल और फावड़ा दे दो तो वह इसके हाथ में रखकर फोटो खिंचवाना है।’
मजदूर ने पास खड़े ठेकेदार की तरफ इशारा किया और कहा-‘साहब, यह भी किराये से आते हैं। आप हमारे ठेकेदार साहब से बात कर लो।’
तब ठेकेदार भी उनके पास आया। वह बुद्धिजीवी से परिचित था। बुद्धिजीवी ने उससे कहा-‘यह कैसे मजदूर तुम अपने पास रखते हो। वहां फोटो खिंचवाने भी नहीं चल सकते और न अपना यह सामान थोड़ी देर के लिये दे सकते हैं। पैसा मांगते हैं।’
ठेकेदार ने हंसकर कहा-‘आप भी तो नहीं सोचते। जिस काम के लिये एक्टर हों उसके लिये असली मजदूर की क्या जरूरत है? रहा सामान का सवाल तो आप फावड़ा तस्सल ले जाईये, तब इसने जो मिट्टी निकाली है उसे दूसरे तस्सल से उठाकर फैंकता रहेगा।’
बुद्धिजीवी ने कहा-‘भई, वाह आप जैसा आदमी होना चाहिये जो समाज सेवा करे।’
ठेकेदार ने हंसकर कहा-‘नही! ऐसी बात नहीं है। उद्धारक साहब के लिये भीड़ जुटाने का ठेका भी मैंने लिया है। वहां ऐसे मजदूर भेजे हैं जिनके लिये आज मेरे पास काम नहीं है। हां, आपने अच्छा याद दिलाया। अब उन लोगों को तस्सल, फावड़ा,गैंती और दूसरे साजोसामान के साथ ही भेजूंगा। उसके लिये कुछ किराया जरूर अधिक लूंगा पर आयोजक तैयार हो जायेंगे।’
बुद्धिजीवी ने कहा-‘हां, फिर हमें किसी ऐसे मजदूर के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं है। हालांकि मैं भी अब सोच रहा हूं कि अपने साथ ऐसे कार्यक्रमों के लिये एक्टर भी जरूरी है जो मजदूरों की भीड़ में चमकदार लगे। जब सभी काम एक्टिंग से हो सकता है तो फिर असली की क्या जरूरत है?’
एक्टर, बुद्धिजीवी और ठेकेदार वहां से चले गये। मजदूर अपने होठों से बुदबुदाया-दूसरा तस्सल’।
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