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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

8/19/2008

मनुस्मृति:युद्ध से विरक्ति वाले राजा को सभी लोग छोड़ देते हैं

लुब्धस्यासंविभागित्वान्न युद्धयन्तेःलुजीविनः
लुब्धानुजीवितैरेव दानभिन्र्नौनर््िनहन्यते


लोभी के धन देने के कारण उसके अनुजीवी (धन लेकर काम करने वाले) युद्ध नहीं करते हैं और लोभी दान न देने के कारण उनके द्वारा ही मार दिया जाता है।

सन्त्यज्जते प्रकृतिभिर्विरक्तप्रकृतिर्युधि
सुखाभिज्जयो भवति विषयेऽप्यतिसक्त्मान्


जो राजा युद्ध से विरक्त होता है उसे सभी छोड़ जाते हैं और जो विषयों में अति आसक्ति पुरुष है उसे बड़े आराम से जीत लिया जाता है।

अनेकचित्तमन्त्रस्तु द्वेष्यो भवति मन्त्रणाम्
अनवस्थितचित्तत्वात्कायै तैः स उपेक्ष्यते


अनेक मंत्रियों की सम्मति के कारण राजा का मन दूषित हो जाता है और अनवस्थित चित्त होने से कार्य में मंत्री उसकी उपेक्षा कर देते हैं।

3 टिप्‍पणियां:

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

वाह...
इन सुभाषितों के लिये आप बधाई के पात्र हैं.
निरन्तरता अपेक्षित.

मुनीश ( munish ) ने कहा…

please continue.great endeavour. bhartrihari ko bhi layen.

मुनीश ( munish ) ने कहा…

please continue.great endeavour. bhartrihari ko bhi layen.

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