पाकिस्तान में लोकतंत्र की वापसी अभी हुई हैं यह मानना कठिन है। जिस तरह वहाँ के समीकरण बन रहे हैं उससे तो ऐसा लगता है कि पुराने नेताओं के आपसी विवाद फ़िर उभर का आयेंगे। वहाँ पीपीपी (पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी) की संभावना लग रही हैं। हालांकि नवाज शरीफ की पार्टी का अभी पीपीपी को समर्थन है पर उसके प्रमुख आसिफ जरदारी की कोशिश अन्य दलों को भी अपने साथ लेकर चलने की है। इस प्रयास में उन्होंने एम क्यू एम (मुहाजिर कौमी मूवमेंट) के प्रमुख अल्ताफ हुसैन से बातचीत की है। ऐसा लगता है कि इससे उनका अपने प्रांत सिंध में इसका विरोध हो रहा है।
वर्डप्रेस के ब्लॉग पर मेरी कुछ श्रेणियां अंग्रेजी में हैं जहाँ से जाने पर पाकिस्तानी ब्लोगरों के ब्लॉग दिखाई देते हैं। कल मैंने उनके एक ब्लॉग को पढा उसमें आसिफ जरदारी से एम क्यू एम को साथ न चलने चलने का सुझाव दिया गया। नवाज शरीफ से चूंकि चुनाव पूर्व ही सब कुछ तय है इसलिए पीपीपी के लिए अपने सबसे जनाधार वाले क्षेत्र में इसका कोई विरोध नहीं है पर एम क्यू एम का सिंध में बहुत विरोध है क्योंकि सिंध मूल के लोगों से मुहजिरों से धर्म के नाम पर एकता आजादी के बाद कुछ समय तक रही पर साँस्कृतिक और भाषाई विविधता से अब वहाँ संघर्ष होता रहता है। मुहाजिर उर्दू को प्रधानता देते हैं जबकि सिन्धी अपनी मातृभाषा को प्यार करते हैं। इसके अलावा सिंध मूल के लोगों में मुस्लिम सूफी विचारधारा से अधिक प्रभावित रहे हैं और उन पर पीर-पगारो का वर्चस्व रहा है। इसलिए सांस्कृतिक धरातल पर सिन्धियों और मुहाजिरों में विविधता रही है। इसलिए ही सिंध में मुहाजिरों की पार्टी एम.क्यू.एम. से किसी प्रकार का तात्कालिक लाभ के लिए किया गया तालमेल पीपीपी को अपने जनाधार से दूर भी कर सकता है और हो सकता है अगले चुनाव में-जिसकी संभावना राजनीतिक विशेषज्ञ अभी से व्यक्त कर रहे हैं- अपने लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ सकता है।
पाकिस्तानी ब्लोगरों के विचारों से तो यही लगता है कि वह लोग एम.क्यू.एम से पीपीपी का समझौता पसंद नहीं करेंगे। इधर यह भी संकट है कि अगर नवाज शरीफ पर ही निर्भर रहने पर पीपीपी की सरकार को उनकी वह मांगें भी माननी पड़ेंगी जिनका पूरा होना पार्टी को पसंद नहीं है। शायद यही वजह है कि अभी तक वहाँ ऊहापोह के स्थिति है।
इन चुनावों का मतलब यह कतई नहीं है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र बहाल होने के बावजूद स्थिर रहेगा। इसके लिए पाकिस्तान के नेताओं को लोकतंत्र की राजनीति के मूल सिद्धांत पर चलना होगा' लोकतंत्र में अपने विरोधी को उलझाए रहो पर उसे ख़त्म मत करो, क्योंकि उसे ख़त्म करोगे तो दूसरा आ जायेगा और हो सकता है कि वह पहले से अधिक भारी भरकम हो'।
मियाँ नवाज शरीफ ने बेनजीर को बाहर भागने के लिए मजबूर किया। राष्ट्रपति पद से लेघारी को हटाया और अपना एक रबर स्टांप राष्ट्रपति बिठाया पर नतीजा क्या हुआ? मुशर्रफ जैसा विरोधी आ गया जिसने लोकतंत्र को ही ख़त्म कर दिया। इसलिए अब राजनीति कर रहे नेताओं का यह सब चीजे समझनी होंगी क्योंकि अभी वहाँ लोकतंत्र मजबूत होने बहुत समय लगेगा और नेताओं के आपसी विवाद फ़िर सेना को सत्ता में आने का अवसर प्रदान करेंगे।
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक ज...
3 वर्ष पहले
1 टिप्पणी:
अच्छी लगी आपकी अभिव्यक्ति !पाकिस्तान में लोकतंत्र की वापसी मेरे समझ से उस झुलते हुए बट वृक्ष के समान है जिसकी जड़ें ठोस जमीं में होने के बजाय अतिशय भावुकता की धरातल पर टिकी है !
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