पितर, देवता, मनुष्य, कीट-पतंग, पशु-पक्षी, जीव-जंतु अर्थात जितना भी प्राणी जगत है गृहस्थ से पालित-पोषित होता है।
सदगृहस्थ नित्य पञ्चयज्ञों के दवारा, श्राद्ध-तर्पण द्वारा और यज्ञ-दान एवं अतिथि-सेवा आदि के द्वारा सबका भरण-पोषण करता है। वह सबकी सेवा करता है।
इसलिए वह सबसे श्रेष्ठ कहा गया है। यदि वह कष्ट में रहता है तो अन्य तीनों आश्रम वाले भी कष्ट में रहते हैं।
सच्चा गृहस्थ वह है जो शास्त्रविहित कर्मों का अनुष्ठान करते हुए सदा सबकी सेवा में रहता है और गृहस्थ धर्म एवं सदाचार का पालन करता है, वही गृहस्थाश्रमी कहलाने का अधिकारी है।
''कल्याण' से साभार
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