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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

11/08/2007

जिन्दगी के रास्ते

कुछ ख्वाब थे जो हकीकत नहीं बने
कुछ सपने थे जो सच नहीं बने
जिन्दगी के रास्ते हैं ऊबड़-खाबड़
आदमी अपने कदम चाहे जैसे बढाए
ऐसे रास्ते बिलकुल नहीं बने
ख्यालों में चाहे जैसा सजा ले
रास्ते पर आरामगाहें मिल जाएं
ऐसे यहाँ जहाँ नहीं बने
सच के रास्ते पर चलना है
यही पक्का इरादा है जिनका
वह कभी गिरते नहीं
अपनी मंजिलों की तरफ
सीना तानकर आगे बढ़तें हैं
यह रास्ते उनके लिए अपने बने

4 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

दीपक जी, बहुत ही प्रेरक रचाना है।बधाई।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

दिवाली मुबारक!

Batangad ने कहा…

सारे ख्वाब हकीकत नहीं बनते। लेकिन, जमकर ख्वाब देखिए और जो, ख्वाब पूरे हो जाएं उनसे नए ख्वाब देखने की ताकत पाइए।
और, भाई ये वर्ड वेरीफिकेशन हटा दो तो बढ़िया।

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

तम से मुक्ति का पर्व दीपावली आपके पारिवारिक जीवन में शांति , सुख , समृद्धि का सृजन करे ,दीपावली की ढेर सारी बधाईयाँ !

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