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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

11/02/2007

सम्मान तो मेरा, असम्मान तो तुम्हारा

पहला ब्लोगर उस दिन बाजार में सब्जी खरीद रहा था कि दूसरा ब्लोगर पुराने स्कूटर पर सवार होकर गुजरा और उसे देखकर रुक गया। उसने पहले ब्लोगर के कंधे पर पीछे से हाथ रख और बोला -"यार, सुबह से तुम्हें कितने ईमैल भेज चुका हूं और तुमने कोई जवाब नहीं दिया।"

पहला ब्लोगर बोला-"वैसे तो मैने तुम्हें बता दिया था कि मैं सुबह कंप्यूटर पर काम नहीं करता। अगर आज करता तो भी मैं तुम्हारा ईमैल नहीं पढ़ता। आखिर मेरी भी कोई इज्जत हैं कि नहीं। मेरे से रिपोर्ट लिखवा लेते हो पर कमेन्ट नहीं देते।"

दूसरा ब्लोगर-"अरे यार अब छोडो पुरानी बातों को अब मेरे साथ चलो। आज मेरा सम्मान हो रहा है। मैने सोचा तुम मेरे साथ रहोगे तो अपनी इज्जत बढ़ेगी।"

पहला-"क्या मुझे तुमने फालतू समझ रखा है जो तुम्हारी इज्जत बढ़वाने के लिए अपना समय खराब करूंगा।''

दूसरा -"नहीं तुम तो हिन्दी को अंतर्जाल पर फ़ैलाने के लिये प्रतिबद्ध हो। इसलिए तुम्हें तो खुश होना चाहिये कि एक ब्लोगर सम्मानित हो रहा है। तुम्हारा कर्तव्य है कि ऐसे कार्यक्रम की शोभा बढ़ाना चाहिए।"

पहला ब्लोगर खुश हो गया-"चलो ठीक है। तुम कह्ते हो तो चलता हूं। हो सकता है तुम्हें सदबुद्धि आ जाये, कुछ अच्छी कमेन्ट लिखने लगो।"

दूसरा-"इस सम्मान का लिखने से कोई मतलब नहीं है। यार, तुम कभी समझोगे नहीं। वैसे तुम वहां मेरे लिखे-पढ़े की चर्चा मत करना। यह भी मत बताना कि तुम एक ब्लोगर हो।"

पहला ब्लोगर्-''तो तुम्हें एक चमचा चाहिऐ , यह दिखाने के लिये तुम कितने बडे ब्लोगर और तुम्हारा लिखा कोई पढता भी है।

दूसरा-"नहीं यार एक से भले दो होते हैं, हो सकता है कि आगे तुम्हें भी कभी सम्मानित किया जाये। तब मैं तुम्हारे साथ चलूंगा।

पहला ब्लोगर बोला-''वैसे तो इसकी संभावना लगती नहीं है पर तुम कह रहे हो तो चलता हूँ।'

दोनों स्कूटर पर उस स्थान की ओर रवाना हुए जहां सम्मान होना था। वहां और भी बहुत लोग जमा थे पर हाल का दरवाजा बंद था। दोनों वहां खड़े उस भीड़ को देख रहे थे।वहां खड़े एक सज्जन से दुसरे ब्लोगर ने पूछा-"अभी कार्यक्रम शुरू होने में कितनी देर है।"

तब वह सज्जन बोले-"आज का कार्यक्रम तो स्थगित हो गया है, हम सबने अपने सम्मान के लिये जिस आदमी को पैसे दिये थे वह अपने किसी रिश्तेदार के यहां सगाई में शामिल होने बाहर चला ग्या है।उसने फोन कर माफ़ी मांगी है और अब यह कार्यक्रम बाद में कब होगा यह पता नहीं, क्या आप भी सम्मानित होने आये हैं।"

दूसरे ब्लोगर ने फ़ट से अपनी ऊँगली पहले ब्लोगर की तरफ़ उठाई और कहा-"मेरा नहीं इनका सम्मान होना है।"

पहला ब्लोगर हक्का बक्का रह गया। इससे पहले वह कुछ बोले दूसरे ने उसका हाथ खींच लिया और बोला-"चलो यार आज का दिन खराब हो गया।

पहला ब्लोगर थोडी दूर चलकर बोला-''यह क्या मतलब है तुम्हारा?सम्मान तुम्हारा और असम्मान मेरा। तुम उससे क्या कह रहे थे?''

दूसरा बोला-''यार, तुम समझते नहीं? जब हम किसी से बात कर रहे हैं तो अपना अच्छा या बुरा पक्ष नहीं रख सकते। अगर तुम उससे बात करते हुए मेरे सम्मान की बात करते तो ठीक रहता। मुझे अपनी बात करते हुए अपनी नजरें नीचीं करनी पड़ती और बिचारों जैसा चेहरा बनाना पड़ता जो कि मुझे मंजूर नहीं। तुम्हें इसकी कोई जरूरत नहीं पड़ती।

पहले ब्लोगर ने कहा-"इसमें पक्ष और विपक्ष की क्या बात थी? वैसे क्या तुमने अपने सम्मान के लिये पैसे दिये हैं।"

दूसरा-"नहीं! तुमने क्या मुझे पागल समझ रखा है? सम्मान करने वाले का मुझ पर उधार है इसलिए उसे वसूल करने के लिये वह सम्मान कर रहा है। वह कोई अपना खर्च थोडे ही करेगा, वह इन अन्य सम्मानीय लोगों के पैसे से ही एडजस्ट करेगा। अब तुम जाओ मुझे दूसरा काम निपटाना है।"

पहला ब्लोगर गुस्से में बोला-"कमाल करते हो यार! यह मैं झोला लेकर कहां घूमूंगा। पहले मुझे मेरे घर तक पहुंचाओ फ़िर कहीं भी जाओ।"

दूसरा बोला-"यार जिस काम के लिये तुम्हें लाया था वह तो हुआ ही नहीं। बताओ मैं कैसे अब तुम्हें छोड्ने के लिये इतनी दूर कैसे चल सकता हूं, तम अभी टेम्पो से निकल जाओ बाद में तुम्हें पैसे दे दूंगा।"

पहला ब्लोगर समझ गया कि इससे माथा मच्ची करना बेकार है, और वह चलने को हुआ तो पीछे से दूसरा ब्लोगर बोला-"और हां सुनो। यह ब्लोगर मीट नहीं थी इसका मतलब यह नहीं है कि तुम रिपोर्ट नहीं लिखो। इस सम्मान समारोह पर जरूर लिखना, भूलना नहीं। तुम तो ऐसे ही लिख देना....यार कुछ भी लिख देना।

"पहले ब्लोगर ने व्यंग्य और गुस्से में पूछा-'इसका शीर्षक क्या लिखूं? मेरे ख्याल से 'सम्मान मेरा और असम्मान तुम्हारा' शीर्षक ठीक रहेगा।"

दूसरा ब्लोगर बोला-"यार!इतना मैं कहाँ जानता हूँ तुम खुद ही सोच लेना।"

इससे पहले कुछ और बात पहला ब्लोगर उससे पूछ्ता वह स्कूटर से चला गया। इधर सामान्य होने के बाद पहला ब्लोगर सोच रहा था कि-मैने यह तो पूछा ही नहीं कि इस पर हास्य कविता लिखूं या नहीं? ठीक है इस बार भी हास्य आलेख ही लिखूंगा।"

2 टिप्‍पणियां:

बालकिशन ने कहा…

अच्छा व्यंग्य है. वैसे आपने मेरी भी पीड़ा बयां करदी. बहुत ही सुंदर लिखा है.

Udan Tashtari ने कहा…

यही वाला वो हास्य आलेख है क्या या कोई और लिखने वाले हैं?? :)

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