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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

10/16/2007

खालीपन

अब रिश्तों में लगता है
अजीब सा फीकापन
बडे बोझिल होते जाते हैं
उम्र के बढ़ते -बढते
जिनके साथ बीता था बचपन
जब लोग लगाते हैं
रीति-रिवाज निभाने की शर्तें
हो जाती हैं अनबन
इसलिये अपनों से ज्यादा
गैरों में ढूँढ रहा है आदमी अपनापन
वहाँ भी जब होती है
निभाने के लिए शर्तें
मुश्किल हो जाता है आगे बढना
तब आदमी सब से अलग
अकेले में ही बैठकर भरता है
कभी अच्छी तो कभी बुरी आदतों से
अपना खालीपन

4 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

चंद शब्दों मैं गहरी बात.
सुंदर रचना.

नीरज

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया. आनन्द आया.

मीनाक्षी ने कहा…

गागर मे सागर. बड़ी कुशलता से आपने भावों को उभारा है जो सच है.

अमिताभ मीत ने कहा…

अच्छा है हुज़ूर. पहली बार पढ़ा आप को. रचना अच्छी लगी.

मीत

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