अपने बारे में मुझे दो बातें पता है कि मेरी बुधिद एकदम मन्द है और दूसरा यह कि इस कारण हादसे होंगे ही और मुझे उन्हें झेलना होगा। इस मामले में तीक्ष्ण बुध्दी वालों से कुछ ज्यादा भाग्शाली हूँ कि मुझे अपने गलतियों का अवलोकन करने का अवसर मिल जाता है। कोई बात मेरे समझ में देर से आयेगी जा यह पता चला तो मैंने तय किया कि जब लक्ष्या तरफ तेजी से बढेंगे और इस प्रयास ने हमें उतावला बना दिया जो हमेशा ही दुर्घटनाओं का जनक होता है । यह बुरी आदत भी हमने बुध्दी के मन्द चलते पकड ली, और मान लिया कि जब हम संघर्ष करेंगे तो जीतेंगे ही और यही बात हमारे आत्मविश्वास को बनाए रखती है ।
मैंने जब ब्लोग बनाने का फैसला किया तो कोई योजना नहीं थी , बस यही था कि अपनी रचनाएँ इन्टरनेट पर रख देंगे और जिसे पढना होगा पढ़ लेगा । शराब के नशे से बचने के लिए हमने अपने लेखनी का पुराना नशा अपना लिया था और इसको लेकर भी संशय था कि हम इस मामले में अपनी पुरानी ख्याति वापस ला पायेंगे। मैं भाग्यवादी नहीं हूँ पर जब अपने ब्लोग देखता हूँ तो यही कहता हूँ कि होनी को कौन टाल सकता है-लोग हादसों में टूटते है और हमें हादसे ही बनाते हैं । कभी सोचता हूँ कि इस तरह हकलाते हुए लिखने से अच्छा है कि कुछ और करो, पर क्या यह समझ में नहीं आता सो तबतक लिख रहे है । जैसे ही मौका मिलता है लिखने बैठ जाता हूँ । अपनी हिंदी टायपिंग का ज्ञान उड़ता नज़र आने लगा। अगर यही हाल रहा तो मुझे अपने कई कागज किसी और से टाईप कराने के लिए कहीं और जाना पडेगा ।
जब से इस पर लिखा है किसी पत्रिका को कोई रचना नहीं भेजी । उनके संपादक फोन करने लगे हैं, तो कुछ लोग पूछने लगे हैं कि क्या बात है कि आजकल आपके लेख वगैरह पढने को नहीं मिल रहे । हम कहते हैं कि आजकल टाईम नहीं मिल रहा-इन्टरनेट पर लिखने की बात उन्हें बताना बेकार है क्योंकि वह इसे देखने वाले नहीं है।
उस दिन मेरा एक दोस्त अपने लड़के के साथ घर आया और कहने लगा कि-" यार मुझे एक पत्र भेजना है उसे कंप्युटर पर निकाल दो। "
मैंने कहा-"यार मैं इस समय अपना काम कर रहा हूँ , तुम्हें थोडा समय लग जाएगा। "
उसने अपने लड़के से मेरे घर पर रुकने के लिए कहा और स्वयं चला गया । लड़का बोला -"अंकल मैं थोडी देर बाहर खेल लूं ।"
मैंने उसे इजाजत दे दीं । वह बारह वर्ष का था और अक्सर हमारे घर आया जाया करता था, इसीलिये उसे कालोनी के दुसरे बच्चे भी जानते थे ।
वह बाहर गया तो मैंने सोचा कि पहले मित्र का पत्र टाईप कर लूं और फिर अपना ब्लोग लिखूं । उसका जब मैं पत्र हिंदी में टाईप करने बैठा तो ......पहले तो उंगली रखने की समस्या आयी , । उसे निजात पाई तो पता लगा कि श्री मान को ......आप समझ गये होंगे । पत्र बड़ा था और हम उसे पहले भी करते तो आधा घंटा तो लगता ही, अब इस हालत में तो .......एक घंटे से क्या कम समय लगना था । इस बीच लड़का बार-बार अन्दर आता और हमारे मिसेज से ओके रिपोर्ट माँगता , हमारी मिसेज कहतीं कि -'अभी तुम्हारा कार्य प्रगति पर है ।
चार बार अन्दर और बाहर होकर वह भी झल्ला गया और बोला -"अंकल को आज बहुत देरी लग रही है पहले तो जल्दी कर देते थे। "
मिसेज बोलीं-"तुम्हारे अंकल हिंदी टाईप भूल गये हैं, इसीलिये देर लग रही है। "
वह अपनी पेंट के जेब में हाथ डालकर हमें देखने लगा और फिर बाहर चला गया। बहरहाल हम उस पत्र से डेढ़ घंटे में निजात पा सके ।
ब्लोग बनने के बाद हमें पता लगा कि इसमें कमेन्ट भी होते हैं, और कुछ इस तरह कि जैसे किसी के घर नमस्कार करने या हाथ जोड़कर प्रणाम करने जाते हैं । यह बात भी मुझे देर से समझ में आयी और जब आयी तो बिजली की समस्या शुरू हो गयी । अगर मैं यह कहूं कि लिखना एक नशा है तो कमेन्ट उसके साथ नमकीन खाने जैसा है । मैं नारद पर जब जाता हूँ तो उन लोगों के घर तलाशता हूँ जो मेरे घर कमेन्ट के रुप में उपहार रख आते हैं। कुछ नाम तो पर्चे पर लिख रखे हैं कुछ दिमाग में रखता हूँ । मैं बिना पढे कभी कमेन्ट नहीं लिखता और एक बात जो मुझे सबसे अच्छी लगी कि लोगों ने कमेन्ट रखने में कभी कोई अहंकार नहीं दिखाया जो कि आमतौर से थोडा बहुत ज्ञान आने पर हो जाता है ।
जब मैं किसी ऐसे ब्लोग पर जाता हूँ जहाँ पहले से ही लाईन लगी है तो सोचता हूँ जब इसके मालिक को फुर्सत होगी तब आऊंगा - अभी इनकी नज़र पडे कि नहीं -और यकीन करिये कुछ लोगों के ब्लोग बाद में फुर्सत में मिल भी जाते हैं , कुछ के मिलने बाकी हैं। कुछ ब्लोग ऐसे भी जिन पर मैं कमेन्ट रखने वाला पहला व्यक्ति होता हूँ और मुझे पता होता है कि इस पर लाईन लगने वाली है । एक वजह और है एक बार ब्लोग देखने और पढने के बाद मुझे उससे बाहर आना होता है , और फिर बिजली की समस्या भी आती है, क्योंकि मैंने अपना नेट कनेक्शन को सीधे उससे जोड़ रखा है ।
अभी तो मैं इस फ़िराक में हूँ कि कब कोई ब्लोग लेखक मेरे शहर आये तो उससे थोडा और ज्ञान प्राप्त करूं क्योंकि जितनी जानकारी मैं स्वयं हासिल कर सकता था कर ली अब लिखने का नशा ऐसा चढा है कि कोई नया प्रयोग कराने का मन भी नहीं होता। जानता हूँ कि हकलाते हुए लिख रहा हूँ........फिर सोचता हूँ कि लिख तो रहा हूँ। मैं बढ़ी रचनाएँ लिखने का आदी हूँ और इस हालत में वह संभव नहीं है, और जब कोई मेरे कम्प्यूटर में हिंदी का फॉण्ट लोड करके दे जाएगा तभी कहानी और व्यंग्य लिख सकता हूँ । मैं स्वयं नहीं कर पाता क्योंकि मैं इसका इतना जानकार नहीं हूँ और भय भी लगता है कि कहीं कम्प्यूटर में खराबी न आ जाये और इससे भी चले जाएँ । तब तक हकलाते हुए लिखना जारी रहेगा।
आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान
लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan)
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रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
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हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भल...
7 वर्ष पहले
3 टिप्पणियां:
अब हकलाओ या फर्राटे से बोलो, मगर हमारा नाम तो उस पर्चे में लिख ही लेना भाई!! दिमाग वाला याद रहे न रहे!!जरुर मिलूँगा जब आपके शहर में आऊँगा, वादा रहा. :)
जैसे बोलो लेकिन लिखिये जरुर , अरे भाई पढने वाले कम थोडे ही हैं.
आप लिखते रहे हम तो हर चिट्ठे पर जा कर पढते हैं ।कुछ नया सीखने के लिए और टिप्पणी भी ज्यादा से ज्यादा करने की कोशिश करते है।
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