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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

3/12/2007

अपनी अपनी बात तो कहना ही है

प्रिय नारद,
इस तरह अगर हिंदी लिखावोगे तो मैं अंग्रेजी केसी लिखूंगा यह मेरी समझ मैं नहीं आ रहा है यह पंक्ति लिखते लिखते मैं कुश सोच रहा हूँ पर वह बाद मैं ही लिखूंगा क्यूंकि जीतनी देर मैं इतना लिखा है उतनी देर मैं एक व्यंग्य लिख सकता हूँ । बहरहाल आपने मेरे ब्लोग पर दृष्टि डाली होगी। आप कि प्रतिक्रिया का मुझे इन्तजार रहेगा।
आपका दीपक राज kukreja

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