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11/16/2016

तन्हाई में सबसे बड़ा साथी अपना ही हमसाया है--हिन्दी व्यंग्य कविताऐ (Sathi Apna Saya hai-HindiPoem;s)

 पीछे पेड़ की परछाई सिर पर धूप की छाया है।
तन्हाई में सबसे बड़ा साथी अपना ही हमसाया है।
सहारे की तलाश में कई घरों के दर पर दी दस्तक
ढूंढा तो अपने आंगन में खुशियों का खजाना पाया है।
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बर्फ पिघलानी थी
आग जलाई
अपने हाथ भी जला लिये।

सोना ढूंढ रहे थे
नहीं मिला तो
पीतल के बर्तन ही गला दिये।

कहें दीपकबापू नाचना
हमें आता नहीं था
आंगन टेढ़ा दिखे
इसलिये अंधेरे चला दिये।
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सर्वशक्तिमान से
मत करना कोई याचना
जिदंगी का सब सामान
उसने संसार में भर दिया है।

हाथ पांव और बुद्धि का
देकर भंडार उसने किया कृतार्थ
कोई नहीं कर भी लिया है।
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सर्वशक्तिमान से
शक्ति की याचना क्यों करते हैं।
पांव दिये चलने को
साष्टांग होते उसके सामने
हाथ दिये काम करने को
फैलते उसके आगे
फिर इंसान होने का दंभ क्यों भरते हैं।
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