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2/16/2016

उलटपंथी बुद्धिमान योगमाता की शरण लें (Janwadi buddhiman Yogamata ke sharan len)

                                                           नियमित योग, अध्यात्मिक ज्ञान तथा लेखन साधक होने के कारण इस लेखक की बुद्धि शायद स्वाभाविक ढंग से काम करती है या फिर  अतिआत्मविश्वास से वह भ्रष्ट हो गयी है यह तो पता नहीं पर जिस तरह देश में घटनाक्रम चल रहा है उससे तो लगता है कि अनेक बुद्धिमानों की सोच नारों तक अब सिमटी गयी है या पहले से ही थी। पैंतालीस साल हो गये लिखते पढ़ते और चिंत्तन करते। समाज के शीर्ष पुरुषों इतनी वैचारिक संकीर्णता की अनुभूति नहीं हुई जो अब दिखने लगी है। योग साधक के रूप में लगता है कि जल, भोजन तथा वायु का प्रदूषण तथा सूर्य की अग्नि का तेज  जिस क्रम में बढ़ता गया है सामान्य लोगों की बुद्धि उससे दुष्प्रभावित हुई है जिसका निवारण योग साधना से ही हो सकता है। जब अपनी बुद्धि पर संदेह हो तो फिर योग साधना से उसे बचाये रखने का दावा तो नहीं कर सकते पर जिस तरह देश के बुद्धिमान टीवी चैनलों और समाचार पत्रों में देश विरोधी नारों पर बहस कर रहे हैं उसने जरूर हैरान कर दिया है।
बहरहाल हम बात कर रहे हैं कि जनवादी बुद्धिजीवियों की जो अपने प्रतिकूल विचाराधारा के विरोध करते करते इतने अंधे हो गये हैं कि उन्हें आतंकवाद और विरोध क अंतर ही समझ में नहीं आ रहा है। उन्हें हिन्दुत्व से घृणा है पर इसका आशय नहीं है कि किसी दूसरे धर्म की आड़ लेकर उस पर हमला करें। इसे सहज मानना गलत होगा। बीच में हमने सुना था कि चीन भारत को बत्तीस टुकड़ों में बांटने की योजना बना रहा है। तब यह मजाक लग रहा था पर जिस तरह देश में वातावरण बन रहा है उससे लग रहा है कि जनवादी अपनी तात्कालिक स्वार्थों के लिये उसके सहायक बन रहे हैं।  हालांकि हमें पता है कि जनवादियों की शक्ति ज्यादा नहीं है और राष्ट्रवादी उनसे निपटने में सक्षम हैं पर इससे देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित होने का भय है जो देश में अंततः अनेक प्रकार के संकट पैदा करेगी।
हमें जनवादियों की योग्यता पर कभी संदेह नहीं रहा पर हिन्दुत्व की विचाराधारा का विरोध करने के लिये उन्हें कश्मीर या किसी अन्य धर्म की आड़ लेकर हमला नहीं करना चाहिये। राष्ट्रवादी जिन प्रतीकों से चिढ़ते हैं उनका उपयोग करने से पहले इन जनवादियों को सोचना चाहिये कि भारतीय समाज में इसकी उनके प्रतिकूल प्रतिक्रिया हो सकती है।  जनवादी अपनी दृष्टि से भारतीय समाज को चीथड़े चीथड़े हुआ देखते हैं पर यह उनका वहम है।  जिस तरह वह कर रहे हैं उससे तो यह लगता ही है कि जल, भोजन, वायु, अग्नि और आकाश तत्व के प्रदूषित होने का जो दुष्प्रभाव हुआ है उनसे उनकी बुद्धि कुंठित हो गयी है। वह भले ही भारतीय योग साधना से हिन्दुत्व के कारण घृणा करें पर सच यह है कि उन्हें उसकी शरण लेना चाहिये।  याद रखें कम से कम इस धरती पर दो योगी हिन्दू शीर्ष पुरुष तो रोज दिखते ही जो अकेले ही उनके दुष्प्रचार को समेट लेने की ताकत रखते हैं। 
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप 
ग्वालियर मध्य प्रदेश

Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh

वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

दीपक जी
हमने आपके विभिन्न ब्लागों का अध्ययन किया। जिसके बाद हमने पाया कि आपकी रचनाएं पठनीय और समाज को संदेश देने वाली है। जिसे देखते हुए हम आपको अपनी पत्रिका में लिखने के लिए आपको आमत्रित करते है।

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