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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

8/09/2015

अपने हाथ से कर्म करने पर मिलता ‎सच्चा आनंद-चाणक्य नीति के आधार पर चिंत्तन लेख(apne hath se karma karane pa milta sachcha anand-A Hindu Hindi thought article based on chankya policy)


                विश्व में मनोरंजन के व्यवसायियों की धूम केवल इसलिये मची है क्योंकि सामान्य लोगों में ज्ञान का अभाव है। हमारे अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार यह कहा जाता है कि परमात्मा अपने अंदर ही ढूंढने पर मिलता है। इसके व्यापक अर्थ हैं जबकि लोग इसे केवल भक्ति भाव से जोड़ देते हैं। दरअसल मनुष्य का स्वामी पहले मन है-ज्योतिष के अनुसार तो राशियों के स्वामी ग्रह होते हैं-और उसका खेल समझ लेने वाला ही ज्ञानी है।
                              एक समय था जब भारत में टीवी का ऐसा दौर चला कि रामायण तथा महाभारत धारावाहिकों की वजह से लोग रविवार के दिन घर में घुस जाते थे।  एक एक के बाद टीवी चैनल खुलते गये और लोग घर में ही सिमटने लगे और बाहर मनोरंजन की इच्छा उनमें नहीं रही। फिल्मों के दर्शक एकदम कम हो गये।  मनोरंजन के व्यवसायियों ने अपनी चाल बदली। फिल्मों के साथ ही अन्य वस्तुओं के लिये ग्राहक जुटाने के लिये वातानुकूलि मॉल (बृहद बाज़ार) बनाये गये। इधर युवाओं में कामनायें पैदा करने वाले धारावहिक तथा फिल्में बनी जिससे प्रेरित नये प्रेमी जोड़ों के लिये यह माल भीड़ से बचने का स्थान भी बने।  इस तरह नवधनाढ्य वर्ग के लिये मॉल एक तरह से पर्यटन स्थान बन गये।  मनोरंजन के व्यवसायी मन के व्यापारिक पक्ष को एक ज्ञानी की तरह जानते हैं समूह बनाकर लोगों की भीड़ को इधर से उधर दौड़ाते हैं।

चाणक्य नीति में कहा गया है कि ----------------------------------
स्वहस्ताग्रथिता माला स्वहस्तधृष्टचन्दनम्।स्वहस्तलिखितं स्तोत्रं शक्रस्यापि श्रियं हरेत्।।                               हिन्दी में भावार्थ-अपने हाथ से गूंथी माल, अपने हाथों से घिसा चंदन और अपने हाथ से लिखा स्तोत्र इंद्र की शोभा भी हर लेता है।
                              योग तथा ज्ञान साधक मन के खेल को जब समझ लेते हैं तब वह अपने जीवन की रूपरेखा स्वयं बनाते हैं।  वह जानते हैं कि बाहर से आया मनोरंजन अधिक देर तक मन को बहला नहीं सकता इसलिये मंत्र जाप और ध्यान से अपने अंदर सहजता का भाव लाते हैं। अनेक लोग ऐसे हैं जो बरसों से सुंदरकांड, हनुमान चालीस तथा अन्य मंत्रों का जाप करते हैं वह कभी भी उसे छोड़ते नहीं है।  अनेक श्रद्धालू प्रातःकाल मंदिर जाते हैं और बरसों तक इस क्रम में चलते हुए बोर नहीं होते। कुछ लोगों को योग साधना करने की ऐसी आदत होती है कि वह अगर कहीं दूसरे शहर जाते हैं तो भी अपना आसन तथा अन्य सामग्री ले जाते हैं। ऐसे लोगो में आत्मविश्वास अधिक होता है और उन्हें बाहर से मन बहलाने के लिये किसी स्तोत्र की आवश्यकता नहीं होती।  अपने प्रयासों से जो आनंद  मिलता है वह  कहीं से भी खरीदा नहीं जा सकता।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप 
ग्वालियर मध्य प्रदेश

Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh


वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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