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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

5/13/2014

फेसबुक पर चुनाव के दौरान हुए वैचारिक द्वंद्व ने हमें अचंभित कर दिया-हिन्दी लेख(fecebook par chunav ke dauran hue vaicharik dwandwa ne hamen achanbhit kar diya-hindi lekh)



     
      इस बार फेसबुक पर चुनाव के दौरान हुए वैचारिक द्वंद्व ने हमें अचंभित कर दिया।  इस लेखक ने सात वर्ष पूर्व ब्लॉग लिखना प्रांरभ किया उस दौरान अनेक ब्लाग लेखकों से अंतर्जालीय संपर्क कायम हुआ था।  वर्ष 2009 के चुनावों की अभी तक इस लेखक को याद है उस समय कोई अधिक चर्चा नहीं हुई थी।  उस समय देश में इंटरनेट था पर वैसी धूम नहीं थी पर इस बार तो चुनावों के दौरान जोरदार पाठ युद्ध दिखाई दिया।  उस समय के हमारे ब्लॉग मित्र इस बार अनेक खेमों में बंटे दिखाई दिये।  एक बात हम जानते हैं कि अंतर्जाल एक आभासी दुनियां हैं।  इसलिये जब तक किसी का भौतिक प्रमाणीकरण न हो जाये तब तक किसी मित्र के  होने का आभास ही करना चाहिये न कि यह विश्वास कि वह इस धरती पर मौजूद ही है।  यह भी संभव है कि पैसा लेकर एक लेखक एक नाम से  किसी एक पक्ष का समर्थन कर रहा हो तो दूसरा नाम रखकर विरोध भी दिखा रहा हो।  संभव है कि चार लोग मिलकर पक्ष विपक्ष में पच्चीस पचास नामों से सहयोग या द्वंद्व कर रहे हों।
      इस पूरे चुनाव के दौरान हमने एक दो पाठ निरपेक्ष भाव से लिखे पर उनमें किसी की तरफ कोई इशारा नहीं था।  हम जानते थे कि अगर कोई बात ऐसी कही तो पुराने मित्र लेखकों की तरफ से कोमल या कड़ी प्रतिक्रिया हो सकती है। मुख्य बात यह कि हमारी रुचि इन चुनावों में वैचारिक तथा प्रचारिक द्वंद्व देखने में ही थी और उसमें शामिल होने का कभी इरादा  नहीं था।
      वैसे तो ब्लॉग पर बने यह मित्र फेसबुक पर आकर दूर हो गये हैं पर फिर भी उनसे कभी कभार संपर्क हो ही जाता है। इन लोगों ने जिस तरह पक्ष चुने उससे आश्चर्य हुआ।  कल चुनाव समाप्त होते ही स्थिति बदल गयी।  जिनको अपने पक्ष की जीत का विश्वास है वह अभी भी आक्रामक हैं जिनको हार की आशंका है उनका कोई पाठ फेसबुक पर नहीं दिखाई दे रहा।  सुनामी आने का अनुमान दिया जा रहा है पर अभी वह आयी नहीं है पर एक पक्ष का लापता होना इस बात की पुष्टि करता है वह विश्वास खो चुका है। इस दौरान अंतर्जाल पर छद्म सैंकड़ों नाम से फेसबुक और ब्लॉग खाते खुले होंगे और वह अब अदृश्य हो जायेंगे। अभी पंाच महीने पहले हमने वह दौर भी देखा जब दिल्ली के चुनाव परिणाम विस्मयकारी रहे थे।  उस समय तत्कालीन राजनीतिक परिदृश्य से अलग एक पक्ष फेसबुक पर आ गया जिसने अपनी आक्रामकता से सभी को स्तब्ध कर दिया पर जल्द ही उसे चुनौती देने वाले भी  आ गये। करीब दो माह तक यह नया पक्ष अत्यंत उत्साहित था क्योंकि प्रचार माध्यमों में उन्हें अपनी लहर देश में चलने का विश्वास हो चला था। उस समय ऐसा लग रहा था कि नया पक्ष अब अंतर्जाल पर अपनी विचारधारा का विस्तार करेगा पर जल्दी ही उनका प्रभाव क्षीण होता चला गया। आज वह एक तरह खामोश हो रहा है-शायद 16 मई का इंतजार कर रहा है जब वास्तविक चुनाव परिणाम आयेंगे।
      कुछ लोगों ने कहा है कि एक्जिल पोल टाईम पास है।  हम जैसे निरपेक्ष भाव वाले लोगों के लिये यह सही है पर  जिनके आधार चुनाव परिणामों पर टिके है उनके लिये यह पूर्वानुमान उनमें किसी के लिये खुशी तो किसी के लिये गम लाने वाले हैं। बहरहाल फेसबुक ब्लॉग तथा ट्विटर पर अब किसी नये विषय की आवश्यकता होगी।  कविता या कहानियों के लिये यहां कोई अधिक स्थान नहीं है। क्रिकेट से लोग उकता गये हैं।  एक समय हमें राजनीति का नशा होता था।   उस समय हमारे पास अंतर्जाल नहीं था।  अंतर्जाल आया तो अपने लिखने का नशा ही इतना रहा कि उस पर कोई अन्य विषय प्रभाव ही नहीं डाल पाता।  अलबत्ता हमने लोकसभा चुनावा 2014 की यह तैयारी पिछले तीन वर्ष पहले ही देख ली थी।  युवा वर्ग के अनेक सदस्य कहीं न कहीं अपने मन में अपने अंदर उठती राजनीतिक सोच को फेसबुक पर जाहिर कर रहे थे।  आज प्रचार माध्यम जिस लहर की बात कर रहे हैं वह अंतर्जाल पर पिछले तीन वर्ष ये चल रही थी।  हमने कभी उस पर ध्यान नहीं दिया पर जब प्रचार माध्यम लहर की बात करते हैं तो हमें हैरानी होती है कि अंतर्जाल पर इतने समय तक इसे जारी किस तरह रखा गया?
      बहरहाल कुछ समय तक फेसबुक, ब्लॉग तथा ट्विटर पर सन्नाटा रहेगा। चुनाव परिणाम अगर एकतरफा नहीं रहे तो फिर जमकर वाद विवाद होगा पर अगर एक तय निर्णय आया तो फिर नये विषय का इंतजार करना होगा।  

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप 
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh

वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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