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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

2/22/2009

मौलिक तथा स्वतंत्र लेखन के प्रोत्साहन के प्रयास जरूरी-आलेख

जब सामाजिक विषयों पर कुछ लिखा जाता है और वह व्यंजना विद्या में है तो अच्छा लगता है। सामाजिक विषयों में व्यापकता होती है इसलिये उस पर हर तरह से लिखा और पढ़ा जाता है पर कठिनाई यह है कि हिंदी ब्लाग जगत को लेकर अनेक बार ऐसी बातें आती हैं जो यह सोचने को मजबूर करती हैं कि आखिर संगठिन होकर हिंदी ब्लाग जगत क्यों नहीं चल पा रहा है? इस समय हिंदी ब्लाग जगत में कई ऐसे ब्लाग लेखक हैं जो चार सालों से लिख रहे हैं पर उनका नाम क्यों नहीं लोगों की जुबान पर चल रहा है? सच बात तो यह है कि हिंदी ब्लाग जगत का नियमित लेखन चालीस से अधिक लोगों के आसपास ही सिमटा लगता है।

एक समाचार के अनुसार भारत में सामाजिक विषयों में अब यौन संबंधी सामग्री के मुकाबले बढ़ी रही है। दरअसल इंटरनेट का भविष्य ही सामजिक विषयों पर टिका हआ है। यौन सामग्री से लोग बहुत जल्दी उकता जाते हैं।

अखबार में अनेक बार ब्लाग के बारे में पढ़ता हैं। यह चर्चा हिंदी के बारे में नहीं लगती बल्कि ‘ब्लाग’ शब्द तक सिमटी रहती है। जब ज्वलंत विषयों पर ब्लाग की चर्चा होती है तो अक्सर अंग्रेजी ब्लोग का नाम दिया जाता है पर हिंदी ब्लाग को एक भीड़ की तरह दिखाया जाता है। जिन हिंदी ब्लाग की चर्चा प्रचार माध्यमों में हुई है वह पक्षपातपूर्ण हुई है इसलिये दूर से हिंदी ब्लाग जगत देखने वाले इसे संदेह की दृष्टि से देखते हैं। इस हिंदी ब्लाग जगत में सम सामयिक विषयों पर अनूठा लिखा गया पर उसे देखा कितने लोगों ने-इसका अनुमान सक्रिय ब्लाग लेखक कर सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि जो लोग चाहते हैं कि हिंदी में अधिक से अधिक ब्लाग लिखें जायें और इसके लिये वह अपनी तरफ से शौकिया या पेशेवर प्रयास करते हुए केवल अपने चेहरे और नाम ही आगे रखना चाहते हैं-अधिक हुआ तो अपने ही किसी आदमी का नाम बता देते हैं।
भारत के लोगों में चाहे जितना तकनीकी ज्ञान,धन,तथा सामाजिक हैसियत हो पर उनका प्रबंध कौशल एक खराब हैं-यह सच सभी जानते हैं। इस प्रबंध कौशल के खराब होने का कारण यह है कि जो उच्च स्तर पर इस काम के लिये हैं वह हाथ से काम करने वाले को महत्वहीन समझते है। फिर उनकी एक आदत है कि वह उस आदमी का नाम नहीं लेना चाहते जिसने स्वयं नहीं कमाया हुआ हो। खिलाड़ी,अभिनेता,पत्रकार,और उच्च पदस्थ लोगों के साथ प्रतिष्ठत नामों का उपयोग करना चाहते हैं। ऐसे में भाग्य से कोई आम आदमी ही प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंच सकता है। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि स्वयं अपने हाथ से मौलिक लिखने वाले लेखकों को यहां एक तरह से प्रयोक्ता की तरह समझा जा रहा है शायद यही कारण है कि कोई उनके नाम तक नहीं लेता।

मैंने कुछ वेबसाईट संचालकों तथा प्रचार प्रमुखों के बयान समाचार पत्रों में देखे हैं। वह हिंदी में ब्लाग बढ़ाने के अभियान में लगे होेने का दावा करते हैं और साथ ही उम्मीदें भी जगाते हैं। समाचार पत्रों में उनको अपना नाम देखकर शायद उनको प्रसन्नता होती है। इसमें कोई बुराई नहीं है पर क्या उनकी नजर में कोई ऐसा ब्लाग लेखक नहीं है जिसका नाम लेकर वह कह सकें कि ‘देखो अमुक अमुक ब्लाग लेखक हैं जो हिंदी में बहुत अच्छा लिख रहे हैं।’ वह ऐसा नहीं कहेंगे कि क्योंकि अगर उन्होंने दस या पंद्रह नाम लिये तो लोगों की जुबान पर चढ़ जायेंगे तब उनको अधिक पाठक मिलना तय है।

अभी हाल ही में पब और चड्डी विवाद में अंग्रेजी वेबसाईट का नाम दिया पर हिंदी वालों को एक भीड़ की तरह निपटा दिया। क्या यह खौफ नहीं था कि अगर नाम लिखा तो वह हिट पा लेंगे। अपनी वेबसाईटों के संचालक अपने ब्लाग का प्रचार खूब करते हैं पर उनके साथ पाठकों का कितना वर्ग जुड़ता है वह जानते हैं। जो हिंदी ब्लाग जगत में सक्रिय हैं वह जानते हैं कि कुछ ब्लाग अगर लोगों की नजर में पड़ जायें तो उसे पाठक अधिक मिलेंगे और उसका लाभ अंततः हिंदी ब्लाग जगत को ही मिलेगा। मगर उनका नाम सार्वजनिक रूप से लेने से कतराना प्रबंध कौशल का अभाव ही कहा जा सकता है।

कुछ लोग कहते हैं कि प्रसिद्ध सितारों और अन्य लोगों को लिखने के लिये प्रयोजित किया जा रहा है-पता नहीं यह सच है कि नहीं-पर इससे हिंदी ब्लाग जगत को कोई लाभ नहीं होने वाला है। अगर एक आम ब्लाग लेखक को प्रायोजित न करें तो उनके ब्लाग का ही थोड़ा प्रचार कर लिया जाये तो कौनसी बड़ी बात हो जाती। वैसे हम सामान्य प्रयोक्ता ही हैं और इंटरनेट कनेक्शन का भुगतान प्रतिमाह करते हैं और प्रसिद्ध होकर कहीं उससे कटवा न लें शायद यही एक भय रहता होगा। एक बात सत्य है कि भारत में ब्लाग का भविष्य हिंदी से ही जुड़ा है और जिस तरह ब्लाग के पाठों की संख्या बढ़ रही है वह संतोषप्रद नहीं है। हिंदी ब्लाग जगत को स्वतंत्र और मौलिक लिखने वाले ब्लाग लेखकों की सख्त जरूरत है पर इस भौतिकवादी युग में उनकों बिना किसी प्रश्रय के लंबे समय तक नहीं चलाया जा सकता। जहां तक पश्चिमी देशों की तुलना में भारतीयों की सामाजिक विषयों में कम रुचि का सवाल है तो उसका सीधा जवाब है कि भारत में हिंदी में सामाजिक विषयों में मौलिक तथा स्वतंत्र लेखकों के लिये कोई प्रश्रय नहीं है। अंग्रेजी में तो पाठकों की सीधे पहुंच होती है इसलिये उसके ब्लाग लेखकों को पाठक मिलना कोई कठिन काम नहीं है पर हिंदी की हालत यह है कि अभी ब्लाग लेखक फोरमों में अपने ही मित्रों से ही पाठक जुटाते हैं।
अभी उस दिनं एक वेबसाईट के संचालक का बयान अखबार में पढ़ने को मिला। मध्यप्रदेश में हिंदी के पाठक मिलने की उम्मीद उसने जताई थी पर उसने इस प्रदेश के किसी एक लेखक का नाम नहीं लिया जो लिख रहा है।
तब बड़ा आश्चर्य हुआ। हिंदी के लिये पाठक जुटाने की बात करने वाला वह शख्स क्या नहीं जानता कि हिंदी में मध्य प्रदेश से लिखने वाले कितने हैं और साथ में प्रसिद्ध भी हैं। ले देकर वहीं बात आ जाती है। कहते हैं कि हिंदी लेखन जगत में नहीं सभी जगह एक दूसरे को प्रोत्साहन देने की बजाय लोग टांग घसीटी में अधिक लगते हैं। अंतर्जाल पर सक्रिय प्रबंधक भी इस भाव से मुक्त नहीं हो पाये हैं। यह कोई शिकायत नहीं है। जिसकी मर्जी है वैसा करे फिर यहां ब्रह्मा होने का दावा भी तो कोई नहीं कर सकता। हां, एक बात स्पष्ट करना जरूरी है कि वह गलतफहमियों में न रहें। यहां वही ब्लाग लेखक डटकर लिखेंगे जिनको पाठक चाहेंगे। यह कोई अखबार नहीं है कि सुबह हाकर डालकर चला आयेगा तो पाठक वही पढ़ेंगे जो संपादक ने छापा हैं। वैसे भी अखबार खोलने में कम मेहनत होती है और खर्चा कम आता है। ब्लाग का मतलब है कि इंटरनेट पर एक बहुत बड़ी रकम खर्च करना। ऐसे में पाठक चाहेंगे बाहर से अलग कोई विषय या अनूठी सामग्री। जब तक आम पाठक को यहां के हिंदी ब्लाग जगत से परिचय नहीं कराया जायेगा तब तक इसके शीघ्र उत्थान की बात तो भूल ही जाईये। अनेक प्रतिष्ठित ब्लाग लेखक भी मानते हैं कि चार पांच वर्ष तक हिंदी ब्लाग जगत में कोई अधिक सुधार नहीं होने वाला। जिन लोगों ने हिंदी ब्लाग जगत का प्रबंध अपने हाथ में-शौकिया या पेशेवर रूप से-अपने हाथ में लिया है उन्हेें यह समझना चाहिये कि इसमें उन्नति और स्थिरता केवल स्वतंत्र और मौलिक ब्लाग लेखकों के हाथों से ही संभव है। अगर वह सोच रहे है कि बड़े और प्रसिद्ध नामों से प्रभावित लोग हिंदी ब्लाग जगत पर सक्रिय हो जायेंगे तो उसे गलत नहीं कहा जा सकता पर आम पाठक के मन में स्थाई रुझान केवल आम लेखक के प्रसिद्ध होने पर होगा। वरना तो स्थिति दो वर्ष से तो मैं ही देख रहा हूं। अभी तक वही ब्लाग लेखक हम लोगों में लोकप्रिय हैं जो दो वर्ष पहले थे। जहां तक भारत में सामाजिक विषयों में यौन विषय से अधिक रुझान होने की बात है अभी ठीक नहीं लगती। अगर सामाजिक विषयों में लोगों के रुझान बढ़ाने की बात है तो फिर ब्लाग लेखकों से ही उम्मीद की जा सकती है पर उसे बनाये रखने का प्रयास कौन कर रहा है? शायद कोई नहीं। अगर इसी तरह चलता रहा तो दस वर्ष तक भी कोई सुधार नहीं होने वाला।
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2 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

बिल्कुल सही कहा आपने ....

Unknown ने कहा…

सहमत हूँ… सच तो यही है कि अभी भी "मठाधीशी" वाली मानसिकता गहरे पैठी हुई है हिन्दी लेखन जगत में…

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