अब रिश्तों में लगता है
अजीब सा फीकापन
बडे बोझिल होते जाते हैं
उम्र के बढ़ते -बढते
जिनके साथ बीता था बचपन
जब लोग लगाते हैं
रीति-रिवाज निभाने की शर्तें
हो जाती हैं अनबन
इसलिये अपनों से ज्यादा
गैरों में ढूँढ रहा है आदमी अपनापन
वहाँ भी जब होती है
निभाने के लिए शर्तें
मुश्किल हो जाता है आगे बढना
तब आदमी सब से अलग
अकेले में ही बैठकर भरता है
कभी अच्छी तो कभी बुरी आदतों से
अपना खालीपन
आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान
लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan)
-
रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
---
हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भल...
7 वर्ष पहले
4 टिप्पणियां:
चंद शब्दों मैं गहरी बात.
सुंदर रचना.
नीरज
बहुत बढ़िया. आनन्द आया.
गागर मे सागर. बड़ी कुशलता से आपने भावों को उभारा है जो सच है.
अच्छा है हुज़ूर. पहली बार पढ़ा आप को. रचना अच्छी लगी.
मीत
एक टिप्पणी भेजें