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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

7/11/2007

ब्लोग को लिंक करें पर नाम भी तो दें

जिन लोगों ने मेरे निज-पत्रक (ब्लोग) अपने निज पत्रकों पर संबद्ध (लिंक) किये हैं उन्हें मैं अपने हृदय से धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ, और वह आगे भी ऐसा करेंगे ऎसी आशा करता हूँ। मैंने अपनी यह बात पहले हे इसलिये कह दीं क्योंकि लोगों को यह न लगे कि जिस विषय पर मैं लिख रहा हूँ उसका केवल मेरे से ही संबंध है।

मैं यहां निज-पत्रकों (ब्लोग )को संबद्ध (लिंक) करने के मामले में कुछ ऎसी मर्यादाओं का पालन करना चाहता हूँ जो कि एक लेखक के लिए होना चाहिए। मैंने देखा है लेखक दुसरे के ब्लोग को लिंक तो कर रहे हैं पर उसका केवल शीर्षक भर ही लेते हैं-ऐसे में अगर पाठक उस शीर्षक पर क्लिक न करे तो उस पता ही न लगे कि वह किस लेखक या ब्लोग से संबद्ध है- ऐसे में लिंक करने वाले को ही कमेन्ट देकर ही वह अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। अगर लिंक करने वाले ब्लोग पर लगे कमेन्ट को देखे और संबद्ध (लिंकित) ब्लोग के वियुज की संख्या देखे तो कहीं तारतम्य नहीं बैठता और कभी तो ब्लोग पर लगे कमेन्ट से ही पता लगता है उस लेखक का भी ब्लोग वहां है। ऐसा भी हुआ है कि मैं उस ब्लोग से एक बार लॉट आया और फिर देखने गया तो पता लगा कि वहां अपना परचम भी फहरा रहा है।

इसे शिकायत नहीं समझना क्योंकि यहां हम सब साथी हैं और कई बातें हमारे मन में आती हैं और कहने के लिए समय नहीं होता और जब कहने का समय होता है तो ध्यान नहीं रहता। मैं पत्रकार जगत में भी रह चूका हूँ और कई बार दूसरी जगह से सामग्री उठाकर प्रकाशित करने का प्रचलन है "साभार" के साथ। क्या ब्लोग को लिंक करने वाले ब्लोग का नाम नहीं डाल सकते-चिट्ठा चर्चा में मैंने ब्लोग के साथ अपने ब्लोग के नाम को भी प्रयोग करते देखा है।पिछले दिनों मेरा माउस खराब था और मैंने अपने नारद पर अपन्जीकृत ब्लोग को पंजीकृत ब्लोग से लिंक कर काम चलाया था-इसमें परेशानी नहीं होना चाहिए।

मुझे लिंक करने वाले मेरे मित्र हैं पर यह एक सामूहिक चर्चा का विषय है-यह निजी विषय होता तो में ईमेल के जरिये भी अपनी बात कह सकता था पर यहाँ तो सब एक दुसरे के मित्र है और हो सकता है किसी के मन में यह बात हो कह नहीं पा रहा हो। फिर सार्वजनिक रुप से चर्चा में मनमुटाव की गुंजाइश नहीं होती।एक बात और हो सकता है कि उस ब्लोग पर कोई ऐसे पाठक भी आते हौं जो किसी ब्लोग को पढना पसन्द करते हैं और शीर्षक को- जो रचना की पहचान होता है,लेखक या ब्लोग की नहीं - और उसे देखकर वापस लॉट जाते हौं। आपके ब्लोग पर लिंकित ब्लोग का लेखक भले भी आपका मित्र हो और वह ऐसा नहीं समझे पर पाठक यह सोच सकता है कि आप एक चालाक रचनाकार है।

नाम की भूख सब में होती है और आप अपने मित्रों को अपने ब्लोग पर प्रदान करें तो क्या हर्ज है? और किसी में न हो मुझमें तो है। साहित्य से मुझे कोई नामा नहीं मिला और जो लिखा है नाम के लिए ही तो लिखा है। रोटी की भूख के इलाज के लिए तो गोली बन गयी है पर नाम की भूख के इलाज के लिए तो कोई गोली ही नहीं बन सकती। और फिर जो लोग लिंकित कर रहे हैं तो उन्हें भी तो इसी तरह की भूख लगती है तभी तो लिंक कर रहे है। खैर यह तो थी मजाक की बात!

मैं यह लेखक की तरह नहीं बल्कि एक पाठक की तरह कह रहा हूँ मुझे पता नहीं क्यों ऐसे ब्लोग बिना कोट के हैंगर की तरह लटके लगते हैं। कभी-कभी तो लगता है कि किसी ऐसे दरजी की दुकान में पहुंच गये हैं जिसके यहाँ खाली हैंगर लटके पडे हैं और इसके पास कोई काम ही नहीं है। मैंने पत्रकार के रुप में कई जगह से सामग्री ली थी नाम और धन्यवाद सहित।

मैंने अपनी बात कह दीं - इस बात को अन्यथा न ले। अकेले मेरे ब्लोग लिंक नहीं होते , हाँ मेरे मन में विचार आया तो कह दिया। फिर लोग कहते हैं कि लिंक करने से लोगों में सदभाव बढेगा पर रचना के शीर्षक आपके मित्र की पहचान नहीं हो सकते जबकि उसके ब्लोग या उसका नाम ही उसके व्यक्तित्व का प्रतीक होता है। मेरा विचार पसंद नहीं हो तो भी आप लोग मेरे ब्लोग मेरे नाम के बिना भी लिंक कर सकते हैं। इस विषय पर मेरा आग्रह बस इतना है कि चर्चा चाहे कर लें पर विवाद नहीं खड़ा करना-अगर पसन्द आये तो कुछ तारीफ तो कर ही देना ताकि हमें भी लगे कि हम भी अच्छा सोच लेते हैं।
एक प्रयोग में यहाँ कर लेता हूँ
आईने में बदहवास दीपक बापू
(दीपक बापू कहिन् से साभार )
कहें दीपक बापू हम फ्लॉप रहने के लिए भी तैयार
(दीपक बापू कहिन् से साभार )
नए और फ्लॉप लेखक हिट्स से विचलित न हौं
(दीपक बापू कहिन् से साभार )

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

सही है। लिंक लगाने में नाम कुछ लोग लिखते हैं कुछ नहीं लेकिन अगर लोग देखेंगे तो पता चल जाता है लेखक।

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