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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

4/15/2007

माता-पिता व समाज से परहेज:विवाह की रीति क्यों रख रहे सहेज

घर से भागकर शादी करने का मतलब यह है कि उन लड़के और लड़कियों का अपने माता पिता और समाज से परहेज हैं, फिर यह समझ में नहीं आता कि वह विवाह की रीति का अनुसरण क्यों करते हैं जो कि समाज की ही उपज है? तथाकथित क्षणिक प्यार की वजह से अपने माता-पिता और समाज को त्यागने के लिए तैयार हो जाते हैं-इसमें किसी को आपति नहीं होना चाहिए, पर विवाह की रीति अपनाने का मतलब है कि कहीं न कहीं आप उससे जुडे होने के इच्छुक हैं - अब इसमें यह भी हो सकता है कि आपको एक समाज पसंद नहीं है और दूसरा आपको अपनाना ही है क्योंकि वह आपके जीवन साथी का है। चलिये आप उसको भी नहीं अपना रहे हैं तो फिर सवाल है कि आप जा कहॉ रहे हैं यह सवाल उठता ही है। जो लड़के लडकियां तथाकथित रुप से समाज को सुधारने की बात करते हुए आपस में विवाह करते हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि इस विश्व में जो भी समाज और धर्म एक समूह के रुप में स्थापित है वह क्षणिक प्यार करने वाले लोगों की वजह से नहीं बल्कि शाश्वत सत्य की खोज कर उसे लोगों में प्रचारित करने वाले महापुरुषों के त्याग तपस्या और साधना के परिणाम से है । उन महापुरुषों ने प्यार को किसी सीमा में नहीं बांधा बल्कि समस्त जीवों से प्रेम करने का संदेश दिया । जिस तथाकथित प्यार को वह सर्वोपरि मानने है वह केवल फिल्मों उपज है जिनमें केवल एक लडकी और लड़के की प्रेम कहानी तक ही सारी कहानी केन्द्रित रहती है, जिसमें बाद में आने वाली सामाजिक तथा घरेलू समस्याओं का कोई जिक्र नहीं रहता है। दरअसल हमारे देश में धर्मं का मतलब है उनसे जुडे कर्म कांडों को अपनाना । धर्म और जातियों के आधार पर तीज-त्यौहार अलग अलग ढंग से मनाये जाते हैं। इस मामले में सबसे ज्यादा समस्या लड़कियों के सामने आती है। जात या धर्म से अलग विवाह करने पर लडकी को अपने ससुराल के ही ढंग से चलना पड़ता है। चूंकि सारे समाज पुरुष प्रधान हैं और औरत को ही बार बार अपने को अच्छी पत्नी और बहु साबित करना होता है। शादी से पूर्व तो केवल लड़के से ही सम्पर्क रहता है प्यार में ऊसके परिवार वालों पर नज़र नहीं आती । शादी के बाद तो स्वागत के नाम पर ही लडकी को अपने कर्म कांडों से जोडा जाता है, और फिर धीरे धीरे अपने घर की रीति समझायी और मनावाई जाती है, लडकी के पास उस समय कोइ चारा नहीं रहता। मेरा मानना है कि अगर इन करम कांडों को छोड़ दिया जाये तो फिर किसी धर्म या जात से बाहर शादी करने पर कोई बवाल नही मचेगा। फिलहाल तो यह सिथ्ती है लडकी को अपने को अच्छी बहु और पत्नी साबित करना है तो उस अपने पति परिवार वालों की हर बात और कर्म कांडों को ऐसे ही माननी पड़ती है जैसा वह कहते हैं। शुरू में यह सब ठीक लगता है पर जब लडकी के सामने अपने बचपन के संस्कार आते हैं तो उसका मन परेशान हो जाता है। आज के युग में वैसे भी जीवन इतना संघर्षमय हो गया है उस पर जब पुराने और नये संस्कारों का आपसी द्वंद मानसिक तनाव बढ़ाने वाला साबित होता है ।आज के युग में वैसे भी जीवन इतना संघर्षमय हो गया है उस पर जब पुराने और नये संस्कारों का आपसी द्वंद मानसिक तनाव बढ़ा देता है । यही कारणहै कि लडकी के माता-पिता और समाज के लोग अपनी लड़कियों का विवाह का विवाह समाज और जति क बाहर नहीं करना चाहते हैं न होने देना चाहते हैं-धर्म के बाहर तो बिल्कुल नहीं। वैसे मैं इन कर्म कांडों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेता क्योंकि मैंने देखा है कि समाजों, जातियों और धर्मों के कर्म् कांडों में विरोधाभास तो है ही अपने अन्दर भी है । समाजों द्वारा इस तरह घर से भागकर विरोध करने का एक यह भी कारण है जिस समाज की लडकी होती है वह अपने को पराजित महसूस करता है लड़के वाला विजेता -और इसके पीछे यही कर्म काण्ड होते हैं जो उस लडकी को अपनाने ही होते हैं। मतलब यह कि लडकी को अपने माता-पिता और समाज के संस्कारों से दूर होना ही है तो फिर प्रश्न यह है शादी की रीति अपनाने की जरूरत क्या है? शादी एक सामाजिक रीति है और समाज का मतलब है माता-पिता, रिश्तेदार और जानपहचान वाले स्वजातीय बंधु। अब तुम्हें लगता है कि उनकी कोई तुम्हारे सामने हैसियत नहीं है तो फिर इस रीति को क्यों सहेज रहे हो । जब ऐसे लड़के ऐसे लड़के और लडकियां खुले में घुमते हैं तो क्या कोई समाज का सभ्रांत व्यक्ति उन्हें उन्हें रोकता है? पशिचम में ऐसे ही साथ रहने की प्रथा है जिसे कहते हैं लिविंग टुगेदर , उसे ही अपना लो । जब समाज को धता ही बताना है तो शादी की क्या जरूरत है। प्यार में पूरा समाज त्यागो तो उसकी रीतियाँ भी त्यागो। हमारी कुछ फिल्मी हसित्यां इसी नीति को अपना चुकी हैं। अखिर में सभी समाजों, जातियों और धर्मों के सभ्रांत , वरिष्ठ और जिम्मेदार लोगों से भी मेरा विनम्र अनुरोध है वह भी संबंधित लोगों को पहले समझाना चाहिए और फिर भी नही समझते हैं तो माता-पिता को चाहिए कि उनसे मूहं फेर लें। जब घर गृहस्थी चलानी होती है तो समाज की किसी न किसी रुप में समाज की जरूरत पडती है और एक दिन उन्हें उनकी जरूरत पडेगी तब उनसे किनारा कर उन्हें दण्डित कर लेना चाहिऐ और इस तरह अपना हिसाब चुकाया जा सकता है। यही सोचकर चुप बैठ जाना चाहिए।शोर मचाकर उनेहं मीडिया में हीरो या हिरोइन नहीं बनाना चाहिऐ।

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