समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

4/27/2019

साधु भी नृप के दरबार में रत्न रूप सजे-दीपकबापूवाणी (sadhu bhi raja ke darbar mein ratna roop mein saja hain-DeepakBapuWani)

साधु भी नृप के दरबार में रत्न रूप सजे,  उधार के नारों से अंधेरे में खाली कूप बजे।
‘दीपकबापू’ महलों में बस गयी बेरहमी, आम लोग तरसे ऊंची छत पर करे धूप मजे।।
----
विचारवान करते परस्पर शब्दों की जंग, अंतहीन बहस से कभी न होते तंग।
‘दीपकबापू’ सलाहकार बाज़ार में खड़े हैं, वही श्रेष्ठ होता रुपया जिसके संग।।
-----
अपने स्वार्थ मार्ग पर सदा चलते, चालाकियों के सहारे सबके पेट पलते।
घर चकाचौंध से चमक रहे हैं, ‘दीपकबापू’ गरीब का चिराग देख जलते।।
----
मान या न मान वह काम निकाल जायेंगे, ज़माने के ठेकेदार अपने दाम ले जायेंगे।
‘दीपकबापू’ यकीन बंद बोतल में शराब जैसा, तोड़ेंगे तभी तो नशा शाम ले पायेंगे।।
---
दिल में कुछ और बातों में कुछ और है, फटा कुर्ता पहने पर खातों में कुछ और है।
शब्दों से गरीब में भगवान दिखाते, ‘दीपकबापू’ फुर्सती सेवक कुर्सी पर कुछ और है।
-----
हर इंसान गुलाम है जिस पर होता कर्ज, वह कमजोर है जिसके शरीर में होता मर्ज।
‘दीपकबापू’ जुबान से बोल जाते चाहे जो शब्द, दिल में कायरता का अहसास है दर्ज।।
----
सब भगवान के दर हाथ जोड़े खड़े हैं, याचना के ढेर उनके सिर पर पड़े हैं।
‘दीपकबापू’ संसार के विषयों से मुक्ति न चाहें, पूछते फिरें खजाने कहां गड़े हैं।।
--

4/14/2019

मनचलों में राजा होने का भ्रम है-दीपकबापूवाणी (Manchalon mein raja hone ka Bhram hai-DeepakbapuWani)

मनचलों में राजा होने का भ्रम है,
किसी के हाथ लट्ठ किसी के बम है।
काम में नकारा मुंह चलाते
‘दीपकबापू’ बाजूओं में नहीं दम है।
----
सड़क पर खड़ा हो बौने की तरह,
देख चलते नरमुंड खिलौने की तरह।
कहें दीपकबापू ओ चंचल मन
मौन तप कर बन सोने की तरह।
---

राम जपते माया गीत गाने लगे,
गरीब इष्ट में प्रीत जगाने लगे।
‘दीपकबापू’ राजसी विषय प्रपंची
स्वार्थ में कर्मरीत चलाने लगे।।
-----
परेशान लोग पूछते हमसे पता
पहुंचे हुए सिद्धों का।
कहें दीपकबापू हम भी लाचार
जहां देखें वहीं सजा घर गिद्दों का
----
रक्षा के लिये जरूरी हाथ में होता डंडा,
अपने चेहरे का नूर ही होता झंडा।
कहें दीपकबापू पराये सहारे
जीने का कोई नहीं होता फंडा।।
---
हाथ जोड़ सेवक रूप रखकर  आते,
सम्मति लेकर राजसुख पाते।
कहें दीपकबापू लोकतंत्र में
हम बाद में ही पछताते।।
---
बंद कमरे में ताजा सांस कैसे मिले,
बिछाया सामान पांव कैसे हिले।
कहें दीपकबापू धन बचाने का डर
दिल में चैन कैसे मिले।।
----
मासुम दिल का कत्ल करते हैं,
जुबान से जख्म भरते हैं।
कहें दीपकबापू न ढूंढो हमदर्द
सभी अपने दर्द में आहें भरते हैं।।
-----

दिल के रिश्ते दूर खड़े हैं,
मतलबी सब पास पड़े हैं।
 ‘दीपकबापू’ हम उदास ही ठीक
चिंता छोड़ चिंत्तन में चित्त जड़े हैं।
----

8/05/2018

वह इश्क इश्क करते रहे बताया नहीं उनके क्या किस्से हैं-दीपकबापूवाणी (Vah vah ishq idhq karat rahe-DeepakBapuWani)


सपने साकार होंगे या टूटेंगे,
रिश्ते बढ़ेंगे या रूठेंगे।
कहें दीपकबापू दिल ख्यालों का घर
कुछ बनेंगे कुछ फूटेंगे।
--
वह इश्क इश्क करते रहे
बताया नहीं उनके क्या किस्से हैं।
कहें दीपकबापू कागज रंगे शब्दों से
पता नहीं खुशी गम के कितने हिस्से हैं।
--------

हवा होने का बस आभास है,
सुगंध से लगता कोई पास है।
कहें दीपकबापू दिल ढूंढे वफा
दिमाग में शंकाओं का वास है।
------

अपने अंदर खौफ छिपा
गैरों को वीरता सिखा रहे हैं।
‘दीपकबापू’ कानों से देखते सब
सबको नयी राह दिखा रहे हैं।
--
दिल का चैन बाज़ार मे बिकता है,
दाम जितना बड़ा दिखता है।
कहें दीपकबापू झूठा सौदागर
अपना सच का दावा लिखता है।
---
नयेपन के वादे भुला रहे हैं,
पुराने हादसों में झुला रहे हैं।
कहें दीपकबापू आंगन टेढ़ा है
नर्तक सबके दिल सुला रहे हैं।
---

लोकप्रिय पत्रिकायें

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर