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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

11/11/2007

ब्लोगर ने ऐसे मनाई दीपावली

ब्लोगर के रूप में उसकी यह पहली दीपावली थी और उसके दिमाग में ब्लोगरी स्टाइल में मनाने का विचार था। पत्नी बहुत देर से बाजार से पूजा सामग्री और मिठाई लाने की कह रही थी और वह कंप्यूटर के पास रखी कुर्सी पर बैठा टीवी पर समाचार देख रहा था-कंप्यूटर खुला हुआ था पर उसका ध्यान टीवी की तरह ही था। आखिर जब उसे टीवी पर भी लिखने का आइडिया नहीं मिला तो वह घर से निकलने लगा तो पत्नी ने कहा-''पूजा सामग्री और मिठाई लेना जा रहे हो न? जल्दी ले आओ। देखो कालोनी में सबने पूजा कर ली है और सब पटाखे जला रहे हैं। हमने ही देर कर दी है।"

ब्लोगर ने कहा-हाँ, जल्दी आऊँगा पर पहले कालोनी में सबको दीपावली की कमेन्ट दे आऊँ।''

वह चला गया और पीछे से कहती रह गई-''किसी को दीपावली की कमेन्ट नहीं बधाई देना।''

उसने सुना ही नहीं और चल पडा लोगों को दीपावली की कमेन्ट देने. उसने देखा बच्चे पटाखे जला रहे हैं तो लग गया अपनी कमेन्ट लगाने. बच्चे एक पटाखा जलाते तो वह तालियाँ बजाता और फिर उनसे कहता कि-''लाओ यार एक पटाखा मुझे दे दो तो मैं जलाकर तुम्हें दीपावली की कमेन्ट दे दूं।''

बच्चे पटाखा देते और कहते-'' अंकल, एक ही देंगे, हमारे पास अधिक नहीं है।"
ब्लोगर कहता'-अरे कमेन्ट तो एक ही दूंगा, मुझे और लोगों के पास भी जाना है। मुझे और जगह भी तो दीपावली की कमेन्ट देनी है।

बच्चे अवाक होकर सोचते कि यह कमेन्ट क्या बला है? कुछ बच्चों ने इसलिए नहीं पूछा कि उनके समझ में नहीं आया तो कुछ अपना अज्ञान न प्रकट हो इसलिए नहीं पूछा। जिन बडे बच्चों को मालुम था तो वह उनके सम्मान करने की वजह से यह समझे कि मजाक कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह थी कि ब्लोगर इतने वर्षों से कालोनी में रह रहा था पर उसका यह मिलनसार रूप पहली बार सामने आया था। एक बच्चे के पास पटाखे काम थे उसने कहा-''अंकल, अपने ताली बजाकर कमेन्ट दे तो दी, अब पटाखा चलाने से क्या फायदा?"
ब्लोगर ने कहा-''अरे, उसका मतलब तो यह है कि कमेंट का कालम खोला। इतने बच्चे जला रहे हैं पर ताली तो मैंने तुम्हारे लिए ही बजाई थी।"
ऐसे ही वह चलता रहा और किसी जानपहचान वाले के घर के बाहर खडा होकर देखता लोग बुलाते--आईये, भाईसाहब। मुहँ मीठा कर जाइये।''

ब्लोगर अन्दर घुस जाता और दीपावली की कमेन्ट देता और मिठाई खाकर चला आता। उधर दूर से उनकी श्रीमती सब देख रहीं थीं और जब देखा कि वह सब चीजें आनी ही नहीं है तो वह खुद ही कालोनी की दुकानों से सब सामान खरीद लाई। उधर ब्लोगर अपना कमेन्ट कार्यक्रम समाप्त कर घर लौटा तो पत्नी की आंखों में गुस्सा देखकर डर गया और उल्टे पाँव घर से बाहर जाने को उद्यत होते हुए बोला-''अरे! मैं अपना सामान लाना तो भूल गया। अभी लाता हूँ।"
"क्या जरूरत है?"पत्नी ने कहा-''सबके घर तुम कमेन्ट दे आये अब अपने घर कौन आयेगा?'

''कोई आया तो?" ब्लोगर ने कहा।

पत्नी ने व्यंग्यात्मक रूप से कहा-''कह देना। मैंने दीपावली पर कोई पोस्ट बनायी नहीं तो कमेन्ट कहाँ से दोगे? कहाँ से मुहँ मीठा कराऊँ।तुम सबको कमेंट दे कर पटाखे जलाते और मिठाई खाते रहे, यह सोचा कि कोई तुम्हारे घर दीपावली की कमेन्ट देने भी आ सकता है। क्या जरूरत है सोचने की। "

ब्लोगर सोच में पड़ गया और बोला-''नहीं, इससे तो अपना नाम फ्लॉप हो जायेगा।"

पत्नी ने दोनों हाथ नचाते हुए व्यंग्यात्मक लहजे में कहा-''तो अभी कौनसा हिट चल रहा है?"
ब्लोगर फिर सोच में पड़ गया। फिर बोला-''नहीं, पर हमें अपनी पोस्ट तो तैयार रखनी चाहिए हो सकता है की कोई कमेन्ट देने आ आजाये। मैं जा रहा हूँ।'' पत्नी ने कहा-''मत जाओ। जब तुम लोगों को केम्न्त देने में लगे थे तब मैं ले आई, आओ पहले पूजा करते हैं। फिर पोस्ट और कमेन्ट के मामले पर भी चर्चा करते हैं।

दोनों ने शांति से पूजा की। पूजा करने के बाद पत्नी फिर व्यंग्यात्मक लहजे में बोली-''अब लोगों को यह मिठाई अपनी पोस्ट मत बताना। मैं खुद ले आयी हूँ और कोई कमेन्ट देने आये मैं ही संभाल लूंगी तुम अपने कंप्यूटर रूम में ही रहना, बैठक में मत आना।''

ब्लोगर चुप हो गया और मन में यह सोचने लगा-''पोस्ट किसकी भी हो ब्लोग तो मेरा ही है। किसको पता चलेगा कि पोस्ट किसकी है। सब कमेन्ट तो मेरे नाम पर ही जायेंगे। अरे, अपने ब्लोग पर मैं कितने बडे लोगों के नाम की पोस्ट रखता हूँ पर कमेन्ट तो मुझे ही मिलते हैं। '' उसने कंधे उचकाए और लिखने बैठ गया।
नोट-यह काल्पनिक हास्य रचना है और किसी व्यक्ति या घटना से इसका कोई संबंध नहीं है। अगर किसी की कारिस्तानी इससे मेल खा जाये तो वही इसके लिए जिम्मेदार होगा।

3 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

बहुत बढ़िया काल्पनिक सोच

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत खूब!!!

राजीव तनेजा ने कहा…

दिपावली और ब्लॉगिंग का घालमेल पसन्द आया...लिखते रहें

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