जब काम था वह रोज
हमारे गरीबखाने पर आये
अब उन्हें हमें याद करने की
फुरसत भी नहीं मिलती
गुजरे पलों की उन्हें कौन याद दिलाये
हम डरते हैं कि
कहीं याद दिलाने पर
उन्हें अपने कमजोर पल न सताने लगें
वह यह सोचकर मिलने से
बहुत घबडाते हैं कि
हम उन्हें अपनी पुरानी असलियत का
कहीं आइना न दिखाने लगें
दूरियां है कि बढती जाएँ
टूटे-बिखरे रिश्तों को फिर जोड़ना
इतना आसान नहीं जितना लगता है
बात पहले यहीं अटकती हैं कि
आगे पहले कब और क्यों आये
अच्छा है मतलब से बने
रिश्तों को भूल ही जाएँ
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आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान
लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan)
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रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
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हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भल...
7 वर्ष पहले
3 टिप्पणियां:
सही है ऐसे रिश्तों को भूल ही जायें. बेहतरीन!!!
bahut badiya likha hai. shukriya
बहुत सुंदर संयोजन किया है भावनापूर्ण.पढ़कर अच्छा लगा,बहुत खूब!
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