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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

8/30/2007

जिन्दगी का मर्म

पल भर में बिखर जाती है जिंदगी
बरसों बनाये में लगते हैं
पर हवा के ऐक झौंके में
बडे-बडे महल ढह जाते हैं
छा जाती है मुर्दानगी
फ़िर भी जीवन है चलने का नाम्
अपना कर्म ही है बंदगी
यही सोचकर चलते रहो
बढते रहो अपने कर्तव्य पथ पर
छोडो न अपनी निष्ठा और धर्म
यही है जीवन का मर्म्
करो न किसी इंसान की पूजा
परमेश्वर के अलावा नही कोई दूजा
करते रहो बस उसकी बंदगी

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

परमेश्वर के अलावा नही कोई दूजा
करते रहो बस उसकी बंदगी

--वही कर रहे हैं.

Nishikant Tiwari ने कहा…

दिल की कलम से
नाम आसमान पर लिख देंगे कसम से
गिराएंगे मिलकर बिजलियाँ
लिख लेख कविता कहानियाँ
हिन्दी छा जाए ऐसे
दुनियावाले दबालें दाँतो तले उगलियाँ ।
NishikantWorld

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