वह कहते है हमारे घर में
सांप बहुत निकलते हैं
पूरे इलाक़े में है आतंक
पूरे इलाक़े में है आतंक
हाथी और शेर आदमी पर
हमला करते हैं
कहीं फूंक रहा है ओझा मन्त्र
कहीं हो रही है सरकार से फरियाद
जंगल में मंगल का द्रश्य
अब प्रकट नहीं होता
बेजुबानों को घर से बेदखल कर
अपनी बस्ती बसाई है
जिनका मुजरिम है इन्सान
उनके खिलाफ ही कर रहा है फरियाद
सांप, हाथी और शेर वोटर नहीं है
उनकी मूक भाषा में कहे दर्द को
भला कौन सुनता है।
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पेड-पोधे काट दो
जंगली जानवर और जीव -जंतुओं को
घर से बेदखल कर दो
क्योंकि इंसानों की बस्ती का
बसना हर हाल में जरूरी है
यह धरती हम इंसानों के लिए है
पशु-पक्षी और जीव-जंतु के लिए
थोडी भी जमीन छोड़ना क्यों जरूरी है
ऐसे ही ख्यालो में इन्सान जीं रहा है
जिन बेजुबानों से दोस्ती करना थी
उनका ख़ून पी रहा है
नतीजा यह है कि पशु अब
इंसानों के भेष में आने लगे हैं
सांप उसके दिल में बिल बनाने लगे हैं
क्या करने इन्सान से बदला लेने
के लिए उनकी यह मजबूरी है।
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