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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

12/01/2013

जीवन में उत्थान का संक्षिप्त मार्ग मिलना सहज नहीं-हिन्दी चिंत्तन लेख (no short cut root in life on development-hindu religion thought article)



            जिंदगी में अपने कर्म क्षेत्र के उच्च स्थान पर पहुंचने की आशा हर व्यक्ति करता है पर कुछ लोगों को इतनी उतावली होती है कि वह अतिशीघ्र सफलता की चाहत में गलत मार्ग का अनुसरण कर बैठते हैं जिसका परिणाम  हमेशा ही दुःखदायी होता है।  सच बात तो यह है कि ईमानदारी, परिश्रम तथा नैतिक आधार पर काम करने वालों के लक्ष्य का मार्ग हमेशा ही लंबा तथा दुर्गम होने के बावजूद सुरक्षित होता है।  आजकल हर कोई लक्ष्य(target)  प्राप्ति के लिये संक्षिप्त मार्ग (short cut root)ढूंढता हैं।  प्रचार माध्यमों की प्रसारण के साथ प्रकाशन सामग्री में  राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, पत्रकारिता, फिल्म तथा कला के क्षेत्र के प्रतिष्ठित पुरुषों की ही महिमा गायी जाती है। स्थिति यह है कि इन क्षेत्रों में अब सामान्य परिवारों के बच्चों का स्थापित होना ही कठिन हो गया है। यह मान लिया गया है कि राजनीति, पत्रकारिता, समाज सेवा, फिल्म तथा कला क्षेत्र में कार्य करने के गुण  भी जन्म के साथ विरासत में रक्त के साथ ही आ जाते हैं, इसी कारण वहां भी व्यापार की तरह वंशवाद शुरु हो गया है।  यही कारण है कि सामान्य परिवारों के युवाओं का मनोबल गिरा रहता है।  जहां पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण कुछ लोगों को जल्दी अवसर (chance) मिलता है वहीं सामान्य परिवारों के युवाओं को किसी सार्वजनिक क्षेत्र के विषय से स्वयं को जोड़ने के लिये अथक प्रयास करना पड़ता है। कुछ लोग संक्षिप्त मार्ग (short cut root) ढूंढने के लिये दूसरों की चाटुकारिता करने के लिये तैयार होते हैं तो कुछ उससे भी आगे जाकर अपराध की श्रेणी में आने वाला काम भी कर बैठते हैं।
मनुस्मृति में कहा गया है कि
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यज्ञोऽनृतेन क्षरति तपः क्षरति विस्मयात्।
आयुविप्रापवादेन दाने च परिकीर्तनात्।।
            हिन्दी में भावार्थ-झूठ बोलने से यज्ञ, अविश्वास से तप तथा विद्वानों की निंदा करने से आयु तथा दान का बखान करने उसके फल का नाश होता है।
धर्म शनैः सञ्चिनुयाद्वल्मीकमिव पुत्तिकाः।
परलोक सहायार्थ सर्वभूतान्यपीडयन्।।
            हिन्दी में भावार्थ-जिस तरह दीमक धीरे धीरे अपने लिये बॉबी का निर्माण करती है उसी तरह मनुष्य को भी धर्म पथ धीमे धीमे चलते हुए पर किसी को पीड़ा पहुंचाये अपनी पुण्य कर्म का संग्रह करना चाहिये।
            जीवन में हमेशा सत्य के साथ चलना चाहिये।  हमेशा अपनी स्थिति तथा शक्ति पर आत्ममंथन करते हुए अपना लक्ष्य निर्धारित करना चाहिये।  वर्तमान समय में हर शाख पर एक उल्लू बैठा है इसलिये इस गुलिस्तां में हर तरफ हरियाली होने की कामना नहीं करना चाहिये।  होता यह भी है कि अनेक क्षेत्रों के शिखर पुरुष अपना चेहरा तथा छवि उज्जवल बनाये रखने के लिये काले काम अपने ऐसे ही चेलों से करवाते हैं जो उनके पास अपना उज्जवल भविष्य गिरवी रखते हैं।  कालांतर में विपत्ति आने पर ऐसे चेलों से पीछा छुड़ाया जाता है। सच बात तो यह है कि हम उच्च शिखरों पर बैठे लोगों के बारे में यह भ्रम पालते हैं कि वह कोई उदारमना है। दरअसल ऐसे लोग भी हमारी तरह ऐसे इंसान होते हैं जो अपने परिवार से आगे किसी का विकास सोच नहीं पाते।  उनके परिवार का सदस्य न होने पर उनसे किसी सदाशयता की आशा करना पत्थर से पानी निकालने की सोचने जैसा है।
            कहने का अभिप्राय यह है कि हमेशा ही अपने परिवार की स्थिति तथा व्यक्ति शक्ति के आधार पर अपना पवित्र लक्ष्य निर्धारित करना चाहिये। यह लक्ष्य तथा उसके साधन धार्मिक आधार से पुष्ट होना चाहिये।  भले ही यह मार्ग लंबा लगता है पर यही सुरक्षित है।


लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप

ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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