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4/14/2012

गुनाह और जुबान-हिन्दी शायरी (gunah aur zubaan-hindi shayari or kavita)

अपने दिल के हाथ
हम क्यों इतना मजबूर हो जाते हैं
गुनाह हमने जो किये नहीं
उनका हिसाब देते हैं जमाने को
कसूरवारों के शोर के आगे
अपनी गर्दन क्यों झुकाते हैं।
कहें दीपक बापू
नकारा लोग
करते हैं अपनी कामयाबी का बयान
ऊंची आवाज में
हम क्यों उसमें बहक जाते हैं,
सच समझने की तमीज नहीं जमाने को
हम अपनी सफाई के बयान में
क्यों अपनी जुबां थकाये जाते हैं।
वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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1 टिप्पणी:

aryasamajmarriageinaryasamajmandir ने कहा…
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