एक आदमी ने कवि से पूछा
‘आप तो श्रृंगार रस के कवि थे,
फिर यह हास्य से कैसा नाता जोड़ डाला,
हर विषय को मजाक में ही तोड़ डाला।’
कवि ने कहा
‘‘पहले सोचने का मौका मिलता था,
चहूं ओर थी शांति और हरियाली,
शीतल हवा का झौंका मिलता था,
तब श्रृंगार ही दिल में सजता था,
हमेशा ही प्रेम में दिल का बाजा बजता था,
अब दिन में घंटो रास्ता जाम में बीत जाते हैं
चारों तरफ शोर शराबा और धुंऐं से
निकलते हैं आंसु
हंसकर ही निराशा को जीत पाते हैं,
इंसान ने अपनी आदतों से
धरती और मौसम को बरबाद कर दिया,
व्यसनों को अपने अंदर आबाद कर लिया,
श्रृंगार अब कपड़ों के नीचे बस गया
हम नहीं कर सकते शब्द निर्वस्त्र
इसलिये हास्य की तरफ उनको मोड़ डाला।
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फिर यह हास्य से कैसा नाता जोड़ डाला,
हर विषय को मजाक में ही तोड़ डाला।’
कवि ने कहा
‘‘पहले सोचने का मौका मिलता था,
चहूं ओर थी शांति और हरियाली,
शीतल हवा का झौंका मिलता था,
तब श्रृंगार ही दिल में सजता था,
हमेशा ही प्रेम में दिल का बाजा बजता था,
अब दिन में घंटो रास्ता जाम में बीत जाते हैं
चारों तरफ शोर शराबा और धुंऐं से
निकलते हैं आंसु
हंसकर ही निराशा को जीत पाते हैं,
इंसान ने अपनी आदतों से
धरती और मौसम को बरबाद कर दिया,
व्यसनों को अपने अंदर आबाद कर लिया,
श्रृंगार अब कपड़ों के नीचे बस गया
हम नहीं कर सकते शब्द निर्वस्त्र
इसलिये हास्य की तरफ उनको मोड़ डाला।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
http://dpkraj.wordpress.com
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2 टिप्पणियां:
व्यंग्य उस पर्दे को हटाता है जिसके पीछे भ्रष्टाचार आराम फरमा रहा होता है।
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
आपकी यह पोस्ट आज के (१७अगस्त, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - शनिवार बड़ा मज़ेदार पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
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