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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

11/06/2009

आत्मप्रचार का प्रयास-आलेख (atma prachar ka prayas-hindi lekh)

अगर सभी लोग जीवन सहज भाव से व्यतीत करें तो शायद उनके बीच कोई विवाद ही न हो। मगर यह संभव नहीं है क्योंकि अधिकतर लोग बाह्यमुखी होते हैं और उनमें कुछ ऐसे होते हैं जो अपने व्यवसाय के हित के लिये शोर शराबा करते हुए लोगों का ध्यान अपनी ओर बनाये रखते हैं। आज के आधुनिक युग में इंटरनेट, टीवी, एफ.एम. रेडियो तथा समाचार पत्र पत्रिकाओं में विज्ञापनों का भंडार है उनका लक्ष्य केवल एक ही है कि किसी तरह लोगों को उलझाये रखा जाये। ऐसे में श्रीगीता में वर्णित सहज ज्ञान योग ही वह शक्ति है जो व्यक्ति को आत्मकेंद्रित बनाकर दूसरों के जाल में फंसने से बचा सकती है। यही कारण है कि जितनी उपभोग की प्रवृत्तियां के साथ स्वाभाविक रूप से योग का प्रचार भी बढ़ रहा है। दरअसल यही योग भी एक विक्रय योग्य वस्तु बन गया है यही कारण कि विश्व विख्यात योग शिक्षक भी लोगों के केंद्र बिन्दू में आ गये हैं और लोग उनको अपने कार्यक्रमों में देखकर एक सुख की अनुभूति करते हैं। योग शिक्षक भारतीय धर्म के प्रतीक हैं और उन्होंने एक गैर हिन्दू कार्यक्रम में शामिल होकर यह सािबत भी किया कि
उनके लिये पूरा विश्व एक परिवार है। यहां योग गुरु को गलत ठहराना ठीक नहीं है पर कुछ सवाल ऐसे हैं उनके जवाब में हम ऐसे विचारों तक पहुंच सकते हैं जिनसे सहजयोग के सिद्धांत का विस्तार हो।

यह विश्व विख्यात योग शिक्षक कहने के लिये भले ही गैर हिन्दूओं के कार्यक्रम में गये हों पर वह सभी इसी देश के ही बाशिंदे हैं। मुख्य बात यह है कि इस तरह के कार्यक्रम में उनको बुलाकर आयोजक सिद्ध क्या करना चाहते हैं?
अधिक चर्चा से पहले एक बात स्पष्ट करें कि आम भारतीय अपनी रोजमर्रा के संघर्ष में ही व्यस्त है। किसी भी जाति, धर्म और भाषा समूह के आम आदमी के दिल में झांकिये वहां उसकी निज समस्यायें डेरा डाले बैठे रहती हैं। इनमें से कुछ लोग टीवी तो कुछ समाचार पत्रों में समाचार पढ़कर ऐसे जातीय, भाषाई और धार्मिक समूहों के सम्मेलनों की जानकारी पढ़ते हैं। अगर उनका भावनात्मक जुड़ाव होता है तो कुछ देर सोचकर भूल जाते हैं। आम आदमी में इतना सामथ्र्य नहीं है कि वह ऐसे कार्यक्रमों के लिये धन और समय का अपव्यय करे। मगर चूंकि उसकी सोच में जातीय, धार्मिक और भाषाई विभाजनों का बोध रहता है इसलिये उसका ध्यान आकर्षित करने के लिये उनके शिखर पुरुष ऐसी बैठकें कर अपनी शक्ति का बाहरी समाजों के सामने प्रदर्शन करते हैं। हर समूह के शिखर पुरुष ऐसी गतिविधियों से अपनी कथित समाज सेवा का प्रदर्शन करते हैं।

जिन लोगों ने यह कार्यक्रम किया वह एक भारतीय योग शिक्षक को बुलाकर अपने और बाहरी समाज के सामने अपनी शक्ति के प्रदर्शन करने के साथ ही अपनी छबि भी बनाना चाहते थे। वह जताना चाहते थे कि विश्व भर के प्रचार माध्यमों में छायी एक बड़ी हस्ती उनके कार्यक्रम में आयी। योग शिक्षक ने उनको क्या सिखाया या वह क्या सीखे यह इसी बात से पता चलता है कि अपने इसी सम्मेलन में एक गीत के विरुद्ध अपना निर्णय सुनाया। एक गीत से अपने समाज को डराने वाले यह लोग उस योग शिक्षक से क्या सीखे होंगे-यह आसानी से समझा जा सकता है। 1.10 अरब की इस आबादी में विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं। देश के एक प्रतिशत से भी कम लोग हैं जिनके पास धन अपार मात्रा में है। अगर हम आम और खास आदमी का अंतर देखें तो इतनी दूरी दिखाई देगी जितनी चंद्रमा से इस धरती की। आम आदमी के संघर्ष पर अधिक क्या लिखें? उसके दर्द का भी व्यापार होने लगा है। अगर हम जातीय, धार्मिक और भाषाई सम्मेलनों को देखें तो उसमें खास लोग और उनके अनुयायी शामिल होते हैं पर वह अपने समाज का सही प्रतिनिधित्व नहीं करते हालांकि वह लोगा ऐसा भ्रम वह पैदा करते हैं। मुश्किल यह है कि यह मान लिया जाता है कि उनके पास ही समाज को नियंत्रित करने की शक्ति है इसलिये बाहरी समाज के शिखर पुरुष उनसे संबंध रखते हैं। आम आदमी का कोई संगठन नहीं होता तो जो बनाते हैं वह बहुत जल्दी खास बन जाते हैं उनका लक्ष्य भी यही होता है कि आम आदमी को भीड़ में भेड़ की तरह हांके।

योग शिक्षक बाकायदा उस वैचारिक सम्मेलन में गये जिसे गैर हिन्दू धर्मी लोगों का भी कहा जा सकता ह-हालांकि इस युग में यह शब्द ही मूर्खतापूर्ण लगता है पर पढ़ने वालों को अपनी बात समझाने के लिये लिखना ही पड़ता है। शायद योगाचार्य यह दिखाने के लिये गये होंगे कि इससे शायद देश में एकता का आधार मजबूत होगा। उन्होंने यह भी उम्मीद लगायी होगी कि इसमें वह उस समाज को कोई संद्रेश दे पायेंगे। उनका यह प्रयास एक सामान्य घटना बनकर रह गया क्योंकि वहां तो समाज के ऐसे शिखर पुरुषों का बाहुल्य था जो कि उनकी उपस्थिति को अपने कार्यक्रम का प्रभाव बढ़ाना चाहते थे। किसी दूसरे समुदाय के धर्माचार्य का संदेश ऐसे शिखर पुरुष कभी भी अपनी आंतरिक कार्यप्रणाली का भाग नहीं बनाते। वह जानते हैं कि ऐसी जरा भी भी कोशिश उनका अपने समूह से नियंत्रण खत्म करेगी। एक व्यक्ति हाथ से निकला नहीं कि सारा समाज ही हाथ से निकल जायेगा। आखिर एक गीत से घबड़ाने वाले इतने साहसी हो भी कैसे सकते हैं।
भारतीय योग में केवल योगासन और प्राणायाम ही नहीं आते बल्कि मंत्रोच्चार भी होता है। मंत्रोच्चार में ऐसे शब्द है जिसमें देवी देवताओं की उपासना होती है-एक गीत से घबड़ाने वाले शिखर पुरुष भला दूसरे समूह के इष्टों का नाम अपने लोगों को कैसे लेने दे सकते हैं? कुल मिलाकर यह एक अर्थहीन प्रयास था। योगशिक्षक की उपस्थिति से उनकोकोई अंतर नहीं पड़ा पर आयोजकों के शिखर पुरुष एक अंतर्राष्ट्रीय हस्ती के पास बैठकर अपना वजन बढ़ाने में सफल रहे।

कहने का तात्पर्य यह है कि आम आदमी चाहे किसी भी जाति, भाषा या धर्म का हो उसके समूह के शिखर पुरुष प्रचार माध्यमों में छाये लोगों को अपने यहां बुलाकर अपना वजन बढ़ाते हैं भले ही वह उनके समुदाय का न हो-प्रचार माध्यमों में अपनी छबि बनाने के अलावा उनका कोई उद्देश्य नहीं होता। यह किसी एक समूह के साथ नहीं है बल्कि हर समूह में ऐसा हो रहा है। इसका कारण यह है कि आज की महंगाई, बेकारी, पर्यावरण प्रदूषण तथा सामाजिक कटुता ने आम आदमी को असहज बना दिया है। इसी असहजता को अधिक बढ़कार सभी समाजों को शिखर पुरुष उसे सांत्वना और साहस देने के नाम पर ऐसे सम्मेलन करते हैं पर उनका लक्ष्य केवल आत्म प्रचार करना होता है। जहां तक आदमी आदमी की जिंदगी का प्रश्न है तो वह कठिन से कठिन होती जा रही है और सभी समूहों शिखर पुरुषों के केवल अपने सदस्यों की संख्या की चिंता रहती है।
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com

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1 टिप्पणी:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

दीपक जी बात सही लिखी है आज कल यही देखने मे आता है....अब हर चीज पर बाजारवाद छाता जा रहा है इसी लिए यह सब हो रहा है.......

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