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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

5/06/2007

अभी एक चैनल द्वारा सात बाबाओं के कमीशन लेकर काले धन को सफ़ेद करने के पर्दाफ़ाश का जो प्रसारण हुआ उस पर देश के प्रचार माध्यमों के एक बहुत बडे वर्ग ने न केवल चुप्पी साध ली वरन खबरे तक प्रसारित नहीं की । जब वूल्मर हत्याकांड पर ब्रिटेन का कोई अखबार या टीवी चैनल कोई खबर चाहे वह महत्वहीन क्यों न हो उस पर झपट लेते हैं पर देश में एक टीवी चैनल द्वारा प्रसारित इतनी बड़ी खबर की अनदेखी इस देश मीडिया की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाती है। अक्सर की बार ऐसे मौक़े आते हैं जब कोई इन टीवी चिनालाल वालों से कहता है आप अपनी जिम्मेदारी समझिये तो कहते हैं कि "खबर देना हमारा सामाजिक तथा व्यवसायिक दायित्व है"।
क्या देश के समस्त प्रचार माध्यमों का यह दायित्व नहीं था कि वह इस खबर के फुटेज अपने चैनलों पर दिखाते , जब वह किसी विदेशी खबर और वह भी विदेशी चैनल पर प्रसारित होता है उसके फुटेज यहां दिखाए जा सकते हैं तो देशी चैनल से भला एलर्जी क्यों? यह ठीक है कि यह उनका प्रतिद्वंदी चैनल है तो इतना कर ही सकते थे कि नाम लिए बिना खबर का सार ही बता देते। खबर देकर थोडा उस पर अपने प्रसारण इस तरह करते कि जैसे वह उनकी खबर लगे-या फिर लोगों को यह न लगे कि उनकी नहीं है। चलिये उनकी मजबूरी को समझते हैं पर प्रकाशन जगत ने भी इस खबर के साथ ऐसा ही व्यवहार किया। कल और आज दोनों दिन यह खबर देश के कई बडे अखबारों में देखने को नहीं मिली। मैंने अपने शहर के एक ऐसे अखबार में यह खबर देखी जिसमें मुझे इसकी आशा बिल्कुल नहीं कर सकता था, और जो इसका प्रमाण भी था कि आस्थावान लोग इस खबर से विचलित होने वाली नहीं है।
कल उपरोक्त टीवी चैनल द्वारा तीन अन्य बाबाओं का भी पर्दाफाश किया गया। बार बार उनका यह कहना कि करोड़ों भक्तों को ठगा गया या उनकी भावनाओं से खिलवाड़ किया गया मुझे अतिशयोक्ति लग रही थी। किसी संत या बाबा से विश्वास हटना किसी सच्चे भक्त की आस्था को कम नहीं कर सकता। लोग इन बाबाओं के प्रवचन कार्यक्रमों में जाते हैं और उनका लाभ भी उठाते हैं पर जानते हैं यह भक्ती जगाने वाले माध्यम हैं न कि भगवान हैं, और ज्ञान जो देते हैं वह कोई उनका अपना नहीं है वरन वह तो वैसे भी धरम ग्रंथों में है। हमने देखा हैंकि कई ऐसे लोग भी वहां जाते हैं जो सोचते हैं भक्ती और ज्ञान प्राप्त करने के अलावा समय भी अच्छा पास हो जाएगा। इन बाबाओं के रहन सहन और दैनिक क्रियाकलापों में बस वह भक्त रूचि रखते हैं जो इनसे कोई भौतिक या अन्य सांसरिक लाभ प्रत्यक्ष रुप से लेना चाहते हैं और उनकी संख्या नगण्य होती है। जो लोग इस खबर पर हिंदू धर्म किसी प्रकार का आक्षेप समझ कर रहे है उनसे मैं सहमत नहीं हूँ क्योंकि इन तथाकथित संतो में कोई हिंदू धरम का स्तम्भ होना तो दूर एक ईंट तक नहीं है। हमारे धरम में समय समय पर अनेक महापुरुषों ने इस धरती पर उत्पन्न होकर अपने करम और यश से अपना योगदान दिया पर फिर भी हमारी भक्ती व्यक्ति परक नहीं बल्कि विचार परक और निष्काम भाव से परिपूर्ण रही है ।
मैं aah करता हूँ कि लोग अब और जारुक होंगे तथा

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