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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

4/02/2007

सेवक से स्वामी भक्ती से भगवान:श्री हनुमान

श्री हनुमानजी के भक्तों की कमी नहीं है। जो भगवान् श्री राम का भक्त है वही श्री हनुमान का भी है। हनुमान जयंती की शुभकामनाएँ ।
आज हनुमान जयंती है। हनुमान जी में हªदय से भक्तिभाव रखने वाले लोग उनकेप्रभाव को जानते है। हनुमान जी के चरित्र को आज के संदर्भों में देखें तो ऐसा लगता है कि उनमें भक्तिभाव रखने के साथ उनके चरित्र की भी चर्चा करना चाहिए। श्री हनुमान जी के चरित्र के मूल में मु-हजये उनका भगवान श्रीराम के प्रति ‘सेवाभाव‘ और ‘भक्ति भाव’’ और श्री सुग्रीव के प्रति मैत्रीभाव सदैव मु-हजये आकर्षित करता रहा है। मैं जब उनका स्मरण करता हूं तो ‘सेवक से स्वामी’और ‘भक्त से भगवान’ बनने वाले एक इष्ट की तस्वीर मेरे मस्तिष्क में उभरती है। यह तस्वीर मेरे मस्तिष्क में इस तरह स्थापित है कि जब मैं प्रति मंगलवार जब मंदिर जाता हूं तो उनकी वहां स्थापित तस्वीर से अधिक मेरे हªदय में स्थापित तस्वीर मु-हजये आकर्षित किये रहती है और मु-हजये लगता है वही मेरे सामने है।वर्तमान में जब मै समाज की हालत देखता हूं तो लगता है कि हनुमान जी चरित्र के मूल गुणों की भी व्याख्या करना चाहिए। आजकल लोग सेवक की बजाय स्वामी बनने के लिये आतुर रहते है और जिनके हाथ में वैभव का भंडार है वह भगवान बनकर अपने लिये भक्तों को खरीदना चाहते है। हनुमान जी का राम और सुग्रीव के प्रति जो समर्पण था वह सत्य और धर्म की वजह से था-न कि उसके पीछे उनका कोई स्वार्थ था। श्री राम मर्यादा पुरुषोतम थे ओर किसी भी स्थिति में उन्होंने धर्म से मूंह नहीं मोड़ा था। सुग्रीव ने हर स्थिति में श्रीराम को सहायता का आश्वासन दिया था। जब राजपाट मिल गया और वह वैभव और व्यसनों के मायाजाल में फंसकर अपना मूल कर्तव्य भुला दिया तब एक हनुमान ही थे जो उन्हें लगातार सम-हजयाते रहे कि उन्हें अपने कर्तव्य का स्मरण करना चाहिए। श्रीसुग्रीव ने उनकी बात मान ली और उन्हे तैयार होने का आदेश दिया। इसी बीच कुपित लक्ष्मण जब उनके महल में दाखिल हो गये तो सबसे पहले हनुमानजी ने ही उन्हें सम-हजयाया था। श्रीलक्ष्मण जी उनकी बात सुनकर ही शांत हुए थे। इस प्रसंग में यह स्मष्ट होता है कि श्रीहनुमान जी न वरन् समय, देशकाल तथा राज्य की परिस्थितियों का ज्ञान रखते थेबल्कि उनहे राजनीति का भी अच्छा ज्ञान था। किष्किंधा में सुग्रीव के बाद श्री हनुमान जी को ही सम्मान प्राप्त था। यह उनके बाहूबल के साथ उनके बुद्धिमान होनेका भी प्रमाण था।जब सीता जी की खोज में सब वानर थक गये तब उनके नेता अंगद का धीरज टूट गया और वह आमरण अनशन पर बैठ गये। श्री हनुमान ने तब विचार किया कि इस तरह तो अंगद संभवतः सुग्रीव का राज्य छीन लेंगे-कारण वानरों में कष्ट सहने की क्षमता वैसे ही कम होती है, और जब भूख से यह लोग बिलबिलाऐंगे ओर उनको परिवार की याद आयेगी तो वह उग्र हो जायेंगे और सुग्रीव का भय इनमें समाप्त हो जायेगा। तब वह अंगद को आगे कर उनसे लड़ने को भी तैयार हो जायेंगे।विचार करते हुए श्रीहनुमान जी ने वहां सब वानरों को पृथक-पृथक सम-हजया कर अंगद से अलग कर दिया और फिर उन्हें सम-हजयाने लगे कि यह वानर आपका लंबे समय तक साथ देने वाले नहीं है पर इससे आप सुग्रीव को जरूर नाराज कर लेंगे। उनकी बात का अंगद पर प्रभाव हुआ और वह अपना अभियान आगे जारी रखने को तैयार हुए। इस प्रसंग से श्रीहनुमान जी के रणनीतिक चातुर्य और बौद्धिक कौशल की जो अनूठी मिसाल मिलती है वह विरले ही चरित्रों में होती है।उनका एक गुण जिसनेउनके चरित्र को भगवान पद पर प्रतिष्ठित किया वह हैअहंकार रहित होना। इतने शक्तिशाली और बुद्धिमान होत हुए भी किसी को हानि पहुंचाना या अपमानित करने जैसा कार्य उन्होंने कभी नहीं किया। वह अपनी शक्ति का स्मरण तक नहीं करते थे। जब लंका जाने का प्रश्न आया तो सब घबड़ा गये तब जाम्बवान ने जब श्रीहनुमान को अपनी शक्ति का स्मरण कराकर इस कार्य के लिये प्रेरित किया तब वह तैयार हो गये। जरा हम आजकल लोगों को देखों थोड़ा धन, छोटा पद, और छोटी सफलता में ही मतमस्त हो जाते है। उन्हें श्रीहनुमान जी यह सीखना चाहिए कि शक्ति का प्रदर्शन दूसरों का दिखाने के लिये वरन् उनके हित के लिये करना चाहिए।मैंने श्रीहनुमान जी के चरित्र की जो चर्चा की उसे हर कोई जानता है। मेरा मानना चाहिए कि चर्चा फिर भी होती रहना चाहिए। जब हम किसी के अच्छे गुणों की चर्चा करते हैतो वह धीरे धीरे हम में भी स्थापित हो जाते है और हम कभी किसी के बुराईयों की चचा करते हैं तो वह भी हमारे अंदर आ जाती है। इसीलिये सार्थक चर्चा जिन्हें मैं सत्संग का ही रूप मानता हूं करते रहना चहिए।।

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